पाठ-8, राजस्थानी भाषा अर विद्वानां रा विचार
[ राजस्थानी भाषा : विद्वानां रा विचार ][] ओम पुरोहित 'कागद'
+"इण लोक्तंत्र में जठै ऐक भारत रै भीतर ओ सई है कै
अलेखूं भाषावां है अर हर भाषा री आपरी संस्कृति है ।
... इणी राजस्थान में म्है विश्वविद्यालय में राजस्थानी नै
जागा दिरावण खातर कौसिस करी ही । म्हनै खुशी है
कै जोधपुर विश्वविद्यालय राजस्थानी नै जागा दीवी ।
विणरै पछै बाकी विश्वविद्यालयां जागा दीवी । इण
सारू लोग कैंवता हा कै राजस्थानी रै बढण सूं हिन्दी
रो अहित होवैला । म्हैं कै’यो जका राजस्थान्यां हिन्दी
नै उत्पन्न करी,आदिकाल उठै ऊं ई सरू होवै ।
बा हिन्दी रा विरोधी कीकर होय सकै ? इण सारू
जितरी बोलियां है,जित्यरी भाषावां है,सतदल कमल रै समान है ।"
* डा.नामवर सिंह,प्रख्यात आलोचक,जे.एन.वी.-दिल्ली
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"आपां नै आ बात साफ़-साफ़ समझ लेवणी चाईजैकै आपां
बंगला,मराठी,गुजराती,तेलगू,कन्न
इत्यादि सगळी प्रांतीय भाषावां री तरक्की चावां । हर प्रांत
में उठै री भाषा नै प्रथम ठौड़ है । हिन्दी कै हिन्दुस्तानी
राष्ट्रभाषा ज़रूर है अर होवणी भी चाईजै पण उणरो नम्बर
प्रांतीय भाषावां रै बाद में है ।"
* पंडित जवाहर लाल नेहरू,प्रथम प्रधानमंत्री,भारत
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" जे राजस्थानी जिसी दो च्यार भाषावां प्रतिष्टित होय
जावै तो इण में कोई आशंका कै डर री बात कोनी है ।
राजस्थानी जनता आपरी अचेत सी आत्मा नै फ़ेरूं
सरजीवण करणो चावै । इण सूं पूरै भारत नै लाभ पूगसी
अर राष्ट्रीय एकता नै कोई नुकसाण नीं पूगसी !"
* डा, सुनीति कुमार चाटुर्ज्या, लिंग्विष्टिक सर्वे
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" राजस्थानी एक स्वतंत्र भाषा रै रूप में विकसित होयसी
अर बखत आयां राष्ट्र रै संविधान में सवतंत्र रूप सूं थोड़
पायसी ।जे राजस्थान पूरै नै जागृत करणौ है तो
राजस्थानी भाषा रै माध्यम सूं ई लोगां में जागृति
पैदा करणी पड़सी ।"
* काका कालेकर
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" राजस्थानी नै मानता मिलै,इण रो विकास होवै,इण री
जरूरत सदैव ई रैई है ।पण अफ़सोस री बात है कै इण
क्षेत्र में कोई ठोस काम आजे तक कोनीं होयो ।म्हैं इण
बात सूं सहमत हूं कै प्रांतीय भाषावां रै विकास सूं राष्ट्रीय
भाषा हिन्दी रो कोई नुकसान नीं हुवै ,बलकै उण रो मान
ई दधै ।राजस्थानी भाषा नै संरक्षण देयां हिन्दी रो सबद
भंडार बधै ई है ।"
* पं.नवलकिशोर शर्मा,पूर्व केन्द्रीय मंत्री अर महामहिम राज्यपाल
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"राजस्थानी भाषा नै आठवीं अनुसूची में राखणो ई चाईजै ।
आ म्हारी मानता है ।पण साथै ई म्हैं मानू कै संविधान रै
अनुछेद 345 में जिकी सत्ता राजस्थान री विधानसभा नै
हासिल है,उणरो ई ईमानदारी सूं इस्तेमाल करणो चाईजै ।"
* डा. लक्ष्मीमल सिंघवी,जगचावा विधिवेता
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" राजस्थान री अदालतां में राजस्थानी भाषा रो प्रवेश कोनीं ।
इण सूं न्याव करण री प्रक्रिया में घणी अबखाईयां आवै ।
अदालत में फ़रीक जिण भाषा में बोलै,उण भाषा में इज
लिखीजणो चाईजै । नीं तो बयानां री प्रमाणिकता नीं रैवै ।"
* श्री गुमानमल लोढा़,तत्कालीन न्यायाधीष,राजस्थान उच्च न्यायालय
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"राजस्थानी भाषा घणी स्मृद्ध अर जूनी जनवाणी है ।
इण भाषा रा लेखक आपणै देश अर समाज नै नूंई
दिशा देय सकै । म्हानै राजस्थानी भाषा , साहित्य
अर संस्कृति माथै गरब है ।"
* प्रो. वासुदेव देवनानी,पूअव शिक्षा मंत्री,राजस्थान
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"राजस्थानी भाषा नै मानता अर उण नै प्रादेशिक भाषा
रै पद माथै बैठावणो, ऐ दोनूं काम बाकी है,जिका आपां
सगळां नै मिल’र करणां है ।"
* ह्री मोहन लाल सुखाडि़या,पूर्व मुख्यमंत्री,राजस्थान
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" हिन्दी म्हारी राष्ट्र भाषा है,म्हे उण रो प्रचार करांला !
संस्कृत आपणी प्राचीनतम भाषा है, म्हे उण साम्ही माथो
झुकावांला अंग्रेजी आपां री अंतर्राष्ट्रीय भाषा अर कीं
अरथां में अंतरप्रांतीय भाषा है ,म्हे उण रो ई उपयोग
करांला,पण जठां तांईं राजस्थान रो सम्बन्ध है ,
राजस्थानी भाषा ईम्हांणी मातृभाषा है ,उणरो उपयोग
अर प्रचार करणो खुद रो उतरो ई अधिकार समझां
जितरो दूजा प्रांत आपरी भाषावां नै अपणावण अर
फ़ैलावण में राखै ।"
* श्री जयनारायण व्यास,पूर्व मुख्यमंत्री,राजस्थान
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" आज राजस्थान रा लोग राजस्थानी भाषा री संवैधानिक
मानता री बात उठावै । ज़रूर राजस्थानी भाषा नै संवैधानिक
मानता मिलणी चाईजै । इण नै संविधान री आठवीं अनुसूची
में सामल करीजणी चाईजै । म्हनै तो इण में बिलकुल ई
ऐतराज आळी कोई बात कोनी लागै ।"
* श्री वसंत साठे,पूरव केन्द्रीय सूचना एवम प्रसारण मंत्री,भारत-मई १९८१
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" राजस्थानी भाषा एक भोत सिमरिद्ध भाषा है ,जिकी कै
देश प्रेम सिखावै । इण नै मानता मिलै तो हिन्दी नै इण सूं
कोई नुकसाण कोनी होवै , बनिस्पत राजस्थानी भाषा रै विकास सूं
हिन्दी ई नीं,पूरै विश्व साहित्य नै बधापो मिलसी । म्हैं मन सूं चावूं कै
राजस्थानी भाषा नै संवैधानिक मानता मिलणी ई चाईजै । संसद्व में
जद राजस्थानी भाषा नै संवैधानिक मानता रो विधेयक आयो तो
म्हैं अर म्हारी पार्टी रा लोग इण रो पूरो समर्थन करस्यां ।"
* श्री अटलबिहारी वाजपेयी सांसद,फ़रवरी-१९८४
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"राजस्थानी भाषा नै संवैधानिक मानता मिलणी ई चाईजै । आ भाषा
संवैधानिक री हकदार है । आ तो राजस्थान्यां री गळती रैई कै
वै इतरा बरस आळस मे सूत्या रैया ।राजस्थानी भाषा घणी जूनी अर
सिमरध भाषा है। संसार में प्रचलित अर थापित कई भाषावां रो
जिण बखत नांव ई नीं हो बीं बगत राजस्थानी भाषा फ़ळी फ़ूली
भाषा ही ।अबै कैई राजनैतिक कारणां सूं इणरा महत्व नै
कम नीं आंकनो चाईजै ।"
* डा. बलराम जाखड़,तत्कालीन लोकसभाध्यक्ष,मई-१९८३
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"जठै तक राजस्थानी भाषा री मानता में घांदा घालण या
रोडा़ अटकावण री बात है,तो म्हारै विचार में ओ काम वां
लोगां रो है जिका रै स्वार्थां नै ठेस पूगै का आंच आवै ।
सचिवालय में काम कर रैया अधिकारी सराजस्थानी भाषा
री उपेक्षा करै तो आ बात ठीक कोनीं । उणां नै आपरै
इण रवैयै में बदळाव ल्यावणो चाईजै,जिण सूं कै हिन्दी
रो ई भलो होयसी ।"
* श्री कमलेश्वर,साहित्यकार-पत्रकार,जु
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"म्हैं तो राजस्थानी भाषा रै पगस में हूं । ऐकबार डा. करणी सिंह जी
लोकसभा में मुद्दो उठायो ई हो , पण बात किणीं कारण सूं बैठी कोनी।
खैर,भविस में जद ई राजस्थानी भाषा रो मुद्दो उठैला तो राजस्थानी भाषा
सारू राजस्थान्यां रो पगस लेवांला ।"
* श्री लाल कृष्ण अडवाणी,अध्यक्ष भाजपा,अक्टूबर-१९८७
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" भाषा रै आधार पर प्रांत बण्या ,पण राजस्थान्यां सागै
न्याय नीं होयो ।राजस्थानी भाषा रै आधार पर प्रांत रो
नांव राजस्थान थरप दियो पण अठै- रै लोगां रै मुंडा माथै
पाटी बांध दी । आज राजस्थान आपरी भाषा री संवैधानिक
मानता रै कारण अबोलो है । भाषा री मानता रै अभाव में ई
सरकार अर जनता में संवादहीणता है । प्रांत बेरोजगारी
री मार झेल रैयो है। राजस्थानी भाषा री राज मानता
अर प्रारम्भिक शिक्षा में होयां बिना राजस्थान रै विकस री
कल्पना नीं होय सकै ।"
* डा.रामप्रताप,पूर्व खाद्यमंत्री,राजस्थान,३ मार्च २००३
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" आज राजस्थान रा लोग राजस्थानी भाषा री राज मानता
री बात उठावै ।ज़रूर राजस्थानी भाषा नै संवैधानिक मानता
मिलणी चाईजै।इण नै संविधान री आठवीं अनुसूची में सामल
करीजणी चाईजै ।म्हनै तो इण में बिलकुल ऐतराज वाळी
बात कोनीं लागै ।"
* वसंत साठे ,पूर्व केन्द्रीय सूचना एवम प्रसारण मंत्री,भारत-मई १९८१
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" सै सूं पैली तो राजस्थान सरकार कानीं सूं राजस्थानी भाषा
नै मानता मिलणी चाईजै ।पछै विद्यालयां में इणरै पढण री
व्यवस्था होवणी चाईजै ।"
* श्री प्रभाकर माचवै,साहित्यकार,जून १९८३
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" गोबिल्स रो कैणो है कै ऐक झूठ ने सौ दफ़ा दोहराओ तो बो झूठ नीं रै कर साच बणजासी ! आम मिनख उण नै साच मानणो चालू कर देगो ।राजस्थानी रै सागै यो ही होयो है । लारलै ५० बरसा सैं एक झूठ फ़ैलायो गयो-राजस्थानी भाषा, भाषा नहीं- बोली है ।अर आम मिनख ईं पर बिसवास कर बैठ्यो ।प्रचार इत्तो प्रभावशाली रैयो कै कुछ राजस्थानी भी ओ झूठ बोलण लागग्या ।भाषा अर साहित्य रो ही नहीं , अपणै समाज रो भी ईं सैं घणो नुकसान होयो । जरूरी है कै राजस्थानी समाज हकीकत नै समझै । आपणै राजस्थान में एक कहावत चालै कै - बिना बेटां री मा रुळती फ़िरै । गांव ईं सारू कोई नै दोस नीं देवै , कैवै कै ईं रो तकदीर ही खराब है । पण जीं रा बेटा सावळ हुवै,उणां री मा जे रुळती फ़िरै तो ओळमो बेतां रै सिर जावै-गांव कैवै कै इण खातर जण्या हा के ? आपणी स्थिति जीवण बणावण हाळी मायड़ भाषा रै संदर्भ में मोटा-मोटी ईं तरै ही है । प्रयास है कै आपां आपणी मायड़ भाषा राजस्थानी रै बारै में फ़ैलायोडै भरम री असलीयत नै जाणां। जाणां कै आपणी भाषा घणी समृद्ध है। जाणां कै इण नै संवैधानिक मान्यता क्यूं मिलणी चाये ? जाणां कै आपां नै के काम करणां है ? सामूहिक प्रयास करां-प्रजातंत्र है ,इण में सगळा संगठित हुय’र प्रेसरग्रुप बणावां , जद ही बात ढर्रै आवैगी । "
"दुनियां री करीब-करीब सारी भाषा में एकरूपता जद ई आई ,जद बा राज री,शिक्षा री अर धर्म-ग्रंथां री भाषा बणीं ।गुजराती भाषा खातर महात्मा गांधी जी यो फ़रमान निकाळ्यो थो कै-"हवै पछी कोई ने स्वेच्छाए जोड़नी करवा नो अधिकार नथी । "
[इसके पश्चात किसी को स्वेच्छा से वर्तनी बनाने का अधिकार नहीं है ।]
{सूत्र-सार्थ गुजराती जोड़नी कोष-प्रकाशित सन १९२९ रो पैलो पान्नो }
* रतन शाह , उद्यमी-कोलकाता
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" इस अनमोल साहित्य की रक्षा करना प्रत्येक राजस्थानी ही नहीं ,प्रत्येक भारतीय का पुनीत कर्तव्य है। मैं गीतांजली लिख सकता हूं , डिंगल के दूहे जैसी काव्य रचना नहीं कर सकता । इसका कारण है-आज वह हल्दीघाटी का वातावरण कहां और बिना वातावरण के कवि को प्रेरणा कहां से मिल सकती है । इस लिए तुम्हारा-हमारा,सबका यह कर्तव्य है कि तन से , मन से ,धन से , जैसे भी हो, इस साहित्य को लुप्त होने से बचाया जाए । इसका प्रचार-प्रसार किया जाए ।"सन १९३१"
* रविन्द्रनाथ टैगोर
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सन १९३१ में राजस्थान में ९१ % लोग बा भाषा बोलै ,जकी संविधान सूं मान्य १४ भाषावां सूं अलग है । १०००० लोगां लारै खाली ८०९ लोग आं १४ भाषावां में बोलै , बाकी ९१९१ लोग कुणसी भाषा बोलै ? निश्च्य ही राजस्थानी भाषा बोलै ।
* १९६१ में आज़ाद भारत री सरकार रै अधिकारि सूचना पत्र "गजएटियर ओफ़ इंडिया" रा आंकडा़
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" राजस्थानी वीर प्रदेश री वीर भाषा है । राजस्थानी रो साहित्य अमर साहित्य है । जीवण सूं लबालब भरयोडो़ । कुण जाणै इतिहास में उण कित्ता चमत्कार करिया है । सारो संसार उण पर मुग्ध है। संसार रा बडा-बडा विद्वान, अडा-बडा महापुरूष अर बडा-बडा नेता उण री प्रसंसा करता धापै कोनी। मालवीय जी थोडा़ सा नमूना सुण्या हा, सुणतां ई बोल्या -ओ साहित्य आपणां विश्वविद्यालयां में क्यों नी पढा़ईजै?विश्व कवि रविन्द्रनाथ जी इण साहित्य नै आप रै शांतिनिकेतन सूं छपावण री मंसा प्रकत करी ।
उतरादै भारत री भाषावां में राजस्थानी भाषा सै सूं पुराणी भाषा है ।बा बांगला री बडी बैन है।
.....बा राजभाषा ही, लोक-भाषा ही, शिक्षा री भाषा ही, साहित्य री भाषा ही । विक्रम रै उगणीसवैं सैईकै [ विक्रमी संवत-की उन्नीसव ईं सदी] ताईं राजस्थानी साहित्य रो घणो विकास होयो। बीसवै सईकै[ बीसवीं सदी] में राष्ट्रभाषा हिन्दी राजस्थान में आई । पैली पाठशाला में राजस्थानी पढाई जाती , अबै नवी स्कूलां में राजस्थानी री जाग्यां हिन्दी पढाईजण लागी ।राजस्थानी साहित्य रो विकास बंद तो कोनी पण मंद होग्यो ।शिक्षा संस्थावां अर भाषा री उन्नति रो घणो सम्बन्ध है। लोग जकी भाषा में शिक्षापा वै,बै नै ई बोलै , बै में ई सोचै अर बै में ई साहित्य रचना करै ।
.......शिक्षा री भाषा न्यारी अर जनता री भाषा न्यारी होगी । पढ्योडा़ अर अर जनता में आंतरो पडण लागग्यो । ओ आंतरो दिनूंदिन बधतो ही गयो ।
* ठा.रामसिंह जी तंवर, दिनाजपुर-१९९४,अखिल भारतीय राजस्थानी साहित्य सम्मेलन में
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" मेरा निवेदन है कि राजस्थानी भाषा की बडी़ समर्थ परम्परा रही है । जिस भाषा का ऐसा इतिहास रहा हो , जिस भाषा में शौर्य और शृंगार का ऐसा सम्मिश्रण रहा हो, जिस भाषा में अस्मिता की अभिव्यक्ति के लिए ऐसा अवसर मिला हो,उस भाषा को स्वीकार करने के लिए अगर हम यह कहें कि-हम सोचेंगे कि इन भाषाओं को किस प्रकार आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए और किस आधार पर किया जाए तो शायद यह ऐतिहासिक विडम्बना होगी ।"
*डा. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी,राज्य सभा में -१७ मई २००२
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"राजस्थान राजस्थानी भाषी प्रांत है।हिन्दी इण प्रांत री भाषा कोनी ।....मातृभाषा राजस्थानी है।राजस्थान सदा सूं ई हिन्दी नै राष्ट्रभाषा रै रूप में मानतो अर आदर देतो आयो है पण इण कारण उण नै हिन्दीभाषी मान लेणो सरासर अन्याय है ॥"
* सुमनेश जोशी,साहित्यकार,राजस्थान भाषा प्रचार सभा ,जयपुर [१८-२० मार्च १९६६]
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"राजस्थानी एक समर्थ भाषा है अर आ बात जरूरी है कै उण नै राजस्थान री मातृभाषा रै रूप में मानता दी जावै । "
* हरिभाऊ जी उपाध्याय, साहित्यकार,राजस्थान भाषा प्रचार सभा ,जयपुर [१८-२० मार्च १९६६}
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आज़ादी को ६३ साल हुए ! हम आज़ भी बेज़ुबान हैं ! ऐसा भी नहीं कि हमारी कोई ज़ुबान नहीं ! सब कुछ है !हमारे पास वह ज़ुबान है जिसका लोहा दुनिया मानती है !बस अपनी ज़ुबान में बोलने का अधिकार नहीं !हमारे बच्चॊं को अपनी ज़ुबान में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने का भी अधिकार नहीं ! हमारी ज़ुबान है राजस्थानी !राजस्थानी वह भाषा है जो देश के सब से बडे़ प्रांत की ही नहीं बल्कि सब से बडे़ भूभाग की भी भाषा है ! आईए जानें हमारी राजस्थानी भाषा के बारे में दुनिया के विद्वान/हमारे नेता/हमारे साहित्यकार क्या कहते हैं :-
[ कृपया रोज़ाना देखें- विचारों की इस कडी़ को बढा़ता रहूंगा रहूंगा ! आपके पास हों तो आप भी भेजें !]
"इस चिर युवती या चिरनवीना नक्षत्र रचित रात्रि सी सुन्दरी और गम्भीर भाषा [राजस्थानी] को फ़िर अपने घर की रानी बनाने की चेष्टा हर मरुदेशवासी का फ़र्ज़ है ।भाईयो,अपनी मातृ भाषा राजस्थानी का स्थान फ़िर ऊंचा करो,उससे अपनी उन्नति करो और हृदय का प्रकाश करो !"
[] डा.सुनीति कुमार चाटुर्ज्या,भषा विज्ञानी
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"There is an enoumus man of literture in various forms in rajasthani,of considerable historical importance,about which harly anything is known."
*Sir G.A.Griyarson
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"Our great provincial languages are not dialects or vernaculars as the ignorant sometimes calls them.They are a rich inheretance,each spoken by many million persons, each tied up inextrically with the life and culture and ideas of the mass...es as well as the upper larg."
*Pt. J.L.Nehru
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"The vast literature flourished all over Rajputana and Gujrat where ever Rajput shed his blood."
*Dr.L.P.Tessitorry
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"शिक्षा मातृभाषा के द्वारा ही होनी चाहिए,यदि इस सिद्धान्त को मान लाया जाए तो राजस्थान से निरक्षरता हटने मेँ देर कितनी देर लगे । राजस्थान की जनता बहुत दिनोँ तक भेड़ोँ की तरह नहीँ हांकी जा सकेगी । इस लिए सब से पहले आवश्यकता है कि, राजस्थानी भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया जावे ।"
* राहुल सांकृत्यायन
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"दीपै वांरा देश ज्यांरो साहित जगमगै ।"
*उदयराज उज्ज्वल
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"राजस्थानी को मान्यता और अपने घर मेँ [राजस्थान] अधिकृत रूप से उसकी प्रादेशिक भाषा के पद पर प्रतिष्ठा ,ये दो बड़े काम बाकी हैँ जिन्हेँ हम सब को मिल कर करना है । "
*मोहन लाल सुखाड़िया, पूर्व मुख्यमंत्री,राजस्थान
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"राजस्थानी भाषा का साहित्य खूब फलेफूले और राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता दी जानी चाहिए।"
* सेठ गोविन्द दास
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"राजस्थानी भाषा है या बोली ओ विवाद भलां ई चालू है पण इण मेँ कोई संदेह कोनीँ कै प्राकृत अर अपभ्रंश रै नजदीक जित्ती राजस्थानी है उत्ती शायद हिन्दी भी कोनीँ ।पंजाबी ,मराठी आद सब भाषावां रो मूळ स्त्रोत प्राकृत अर अपभ्रंश मेँ मिलै है , वां नै ...आज संवैधानिक भाषा रो दर्जो मिल्योड़ो है । राजस्थानी रै बारै मेँ विवाद रो कारण समझ सूं बारै है । खैर ! कुछ भी हो आपां नै तो विवाद मांय सूं संवाद खोजणो है ।
*आचार्य महाप्रज्ञ
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"विश्व की भाषाओँ मेँ राजस्थानी भाषा का पच्चीसवां स्थान है ।"
*डा.वेल्फील्ड, अमेरिका
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"सरकार द्वारा शिक्षा का अधिकार कानून बनाया गया है जिसके पैरा 29 (2)(एफ) मेँ यह प्रावधान है कि छात्र छात्राओँ को प्राइमरी शिक्षा उनकी मातृभाषा मेँ दी जाए । राजस्थान मेँ मातृभाषा राजस्थानी है जिसे संविधान की आठवीँ अनुसूची मेँ सम्मिलित नहीँ क...र रखा है तो भारत सरकार द्वारा जो शिक्षा का अधिकार कानून बनाया गया है उसकी पालना कैसे होगी ?18 दिसम्बर 2006 को संसद मेँ श्री प्रकाश जायसवाल द्वारा आश्वासन दिया गया था कि भोजपुरी व राजस्थानी को आठवीँ अनुसूची मेँ लेने का महापात्र कमेटी की अभिशंषा अनुसार 14 वीँ लोकसभा मे ही बिल लेकर आएंगे और मान्यता दिलवाएंगे जबकि अब 15 वीँ लोक सभा का भी दूसरा साल जा रहा है ।"
*अर्जुन मेघवाळ,सांसद
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"राजस्थान ने अपने रक्त से जो साहित्य निर्माण किया है उसकी जोड़ का साहित्य और कहीँ नहीँ पाया जाता और उसका कारण है राजस्थानी कवियोँ ने कठिन सत्य के बीच मेँ रह कर युद्ध के नगाड़ोँ के मध्य कविताएं बनाई थीँ । प्रकृति का तांडव रूप उनके सामने था ।...... राजस्थानी भाषा के साहित्य मेँ जो एक भाव है,उद्वेग है, वह केवल राजस्थान के लिए नहीँ अपितु सारे भारतवर्ष के लिए गौरव की वस्तु है ।"
*रविन्द्रनाथ ठाकुर
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"राजस्थानी वीरों की भाषा है,राजस्थानी का साहित्य वीर सहित्य है । संसार के साहित्य में उसका निराला स्थान है ।वर्तमान काल में भारतीय नवयुवकों के लिए तो उसका अध्ययन अनिवार्य होना चाहिए !"
* पं.मदनमोहन मालवीय
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"हिन्दी हमारे राष्ट्र्भाषा है पर जिस ज़ुबा्न को हमने< मां के पेट से जन्म लेते ही सीखा वह भी हमारी भाषा है और मातृभाषा है । मातृभाषा हमें राष्ट्रभाषा के निकट ले जाटी है , उस से दूर नहीं फ़ैंकती । राजस्थानी हमारी मातृअभाषा है , उसका उपयोग और प्रचार करना वैसा ही अधिकार समझते हैं जैसा दूसरे प्रांत अपनी भाषाओं को अपनाने और फ़ैलाने का ।"
* जयनारायण व्यास,पूर्व मुख्यमंत्री,राजस्थान
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"हमें यह बात साफ़-साफ़ समझ लेनी चाहिए कि हम बंगला,मराठी,गुजराती,तमिल, तेलगु,कन्नड़ ,मलयालम और राजस्थानी आदि अन्य प्रांतीय भाषाओं की तरक्की चाहते हैं । हर प्रांत में वहां की भाषा ही प्रथम है । हिन्दी या हिन्दुस्तानी राष्ट्रभाषा अवश्य है और होनी भी चाहिए लेकिन प्रांतीय भाषाओं के पीछे ही आ सकती है ।"
* पं. जवाहर लाल नेहरू,प्रथम प्रधानमंत्री,भारत
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"राजस्थानी एक अलग भाषा के रूप में विकसित होगी और यथासमय राष्ट्र के विधान में स्वतंत्र रूप से स्थान पाएगी ।
राजस्थानी भाषा के द्वारा ही लोगों में जागृति का काम करना होगा । राजथान में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा और खास करके गांवों की शिक्षा राजस्थानी के द्वारा करने से लोगों में एकता की भावना और नवजीवन का संकल्प दोनों जोर पकडेगे ।"
* काका कालेकर
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" मेरे मन में भारतवासियों के प्रति बडा़ आदरभाव है । भारतीय भाषाओं से मुझे बडा़ लगाव है । मेरी मातृभाषा इतालवी से भी ज्यादा मुझे राजस्थानी भाषा एवमं हिन्दी भाषा से प्रेम है ।"
* एल.पी. टेस्सीटोरी
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" राजस्थानी भाषा राजस्थान की भाषा है । समूचे राजपुताने [राजस्थान] में ,मध्यभारत के पश्चिमी भागों ,मध्यप्रदेश,सिंध, व पंजाब के आस-पास के टुकडो़ में यह ओली जाती है जो एक ओर पश्चिमी हिन्दी से तथा दूसरी ओर गुजराती से भिन्न है तथा एक पृथक और स्वतंत्र भाषा के गौरव का अधिकार रखती है । "
* ग्रियर्सन,भाषा विज्ञानी
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" भारतीय भाषावां मे संस्कृत पछै सब सूं जूनी अर सिमरिध राजस्थानी भाषा कहीजै । फ़ैलाव री दीठ सूं सगळी भाषावां सूं बत्ते क्षेत्रफ़ळ में इण भाषा नै बोलीजै ।
* मूळदान देपावत ,साहित्यकार
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निज भाषा साहित्य बिन , पनपै कदै न प्रान्त ।
सभ्य स्वतंत्र समाज रो , सदा अमर सिधान्त ॥
* कन्हैयालाल सेठिया
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" राजस्थान री भाषात्मक एकता सारू राजस्थानी भाषा नै मानता देवणे जरूरी है ,जिण राज देश नै लडा़कू जोढा दिया , उण री अवमानना अन्याय है । भाषा शास्त्रियां री दीठ में राजस्थानी भाषा एक भाषा है , जनता री भावनावां अर परिस्थितियां न कबूळणी राजनीतिग्यता है । भाषा विधेयक सूं राष्ट्रीयता रो कोई नुकसाण नी हुवै । "
* पूर्वमहाराजा करणी सिंह, सांसद,बीकानेर [१७ फ़रवरी १९६८ नै संसद में भाषा विधेयक राखतां ]
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" राजस्थानी भाषा जो न केवल भारत में है बल्कि विदेशों में भी इसके साहित्य पर रिसर्च हो रहा है और यह एक ऐसी भाषा है जिसमें एक-एक शब्द के दो सौ पर्यायवाची शब्द हैं । हिन्दी हमारी भाषा है.......हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है उनके प्रति सम्मान है लेकिन राजस्थानी भाषा जो प्रदेश के अनेक हिस्सों में बोली जाती है........इसको संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित किया जाए ।"
* डा. बी.डी. कल्ला भू,पू.मंत्री एवम विधायक,बीकानेर {२५-९-१९९२ नै विधान सभा में }
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"...मुझे खुद को ऐसा महसूस होता है कि यदि कोई मैसेज कनवे करना है,कोई बात कहनी है लोगों के गले उतारनी है तो राजस्थानी भाषा का प्रयोग किया जाए,उससे ज्यादा कोई दूसरा बढि़या साधन नहीं हो सकता ।...न दिलों का बंटवारा होगा,न राजस्थान का बंटवारा होगा ,न देश का बंटवारा होगा, कोई बंटवारा नहीं होने वाला है और इस लिए इस भाषा के बाद बंटवारे की बात नहीं जोडे़ तो ज्यादा अच्छा रएगा ।"
* भैरोंसिंह शेखावत,भू.पू.मुख्यमंत्री,राजस्
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"नि्संदेह १०-१२ करोड़ राजस्थानी बोलने वालों की भाषा को केवल बोल-चाल की भाषा बता कर उसे मान्यता प्रदान नहीं करना एक संवैधानिक भूल है !"
* हरीशंकर सिंघानिया
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" राजस्थानी भाषा नै संविधान री आठवीं पानडी़ {अनुसूची} में जोडा़वण सारू म्है सब प्रयास कर रिया हां । इण सारू राजस्थान सरकार अर भारत सरकार रा मुखियावां नै बार-बार कागद लिख रह्यो हूं । आसा है, आपणो सबां रो ओ प्रयास अकारथ नहीं जावैला । "
* महाराजा गजसिंह, पूर्व महाराजा अर सांसद ,जोधपु
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" राजस्थानी भाषा विश्व की १३ समृद्ध भाषाओं में से एक समर्थ भाषा है ।"
* अमेरीकन कांग्रेस ओफ़ लाईब्रेरीज
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" भारत नै आज़ाद हुयां ५७ बरस होगा, पण राजस्थानी भाषा नै जिकी १५ करोड़ {७ करोड़ प्रवासी }लोगां री भाषा है , भारत रै संविधान में मान्यता नहीं देणों - सम्विधान री घोर अवमानना है । प्रजातांत्रिक संविधान में संविधान री जड़ पर कुठारा घात करियो गयो है ।- आ घणीं चिन्ता री बात है । राजस्थान विधान सभा में राजस्थानी भाषा नै सर्वसम्मत संकल्प {प्रस्ताव }्सैं पारित कर’र केन्द्रीय सरकार नै भेज्यो , पण बीं पर तानाशाही राजनेता विचार तक कोनी करियो , आ राजस्थानियां रै लिए अपमानजनक बात है । अब समै आग्यौ है कै सब राजस्थानी एकजुट होय जन-जागरण रै वास्तै अब हियान सरू करै ।’
* कन्हैया लाल सेठिया
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राजस्थानी भाषा प्रचार सभा खानी सूं जयपुर में १८ सूं २० मार्च १९६६ तक विद्वाना री ऐक गोठ तेडी़ ! ईन गोठ में राजस्थानी भाषा पैटै कई प्रस्ताव पारित होया ! इण में सूं ऐक प्रस्ताव :-
"राजस्थानी भाषा अर सहित्य रै ईन उपन्षद रै मौकै पर भेळा हुयोडा़ राजस्थान रा साहित्यकारां अर विद्वानां रो यो पक्को मत है कै राजस्थान री स्वभाविक मातृभाषा राजस्थानी है । भारतीय भाषावां रै ऐतिहासिक काळक्रम अर भारतीय भाषा विज्ञान रै सिद्ध निष्कर्षां रै आधार पर राजस्थान प्रदेश मातृभाषा री दृष्टि सूं हिन्दी प्रदेश कोनीं । राजस्थानी भाषा अर साहित्य में जण-जीवण रै व्यवहार री धारावाही परम्परा अपभ्रंश काळ सूं ई अविच्छन्न रूप सूं चालती आई है । इण वास्तै उपनिषद रै मौकै पर भेळा हुयोडा़ राजस्थान रा साहित्यकारां अर विद्वानां रो यो फ़ैसलो है कै राजस्थान री दो ढाई क्रोड़ लोगां री स्वाभाविक मातृभाषा नै प्रदेश अर राष्ट्र रै स्तर पर पक्कायत मानता मिलनी चाईजै ! इण वास्तै यो निर्णय करियो जावै कै राजस्थानी री बोलियां रो उदारता सूं विकास करतां हुयां राजस्थानी भाषा रै रूप रो विकश करियो जावै अर राजस्थानी भाषा री मानता री समस्या नै सारै राजस्थान में चेतना पैदा करता हुयां सुळझाई जावै । "
प्रस्तावक= जनार्दनराय नागर
समर्थक=सुमनेश जोशी
उपस्थित=रेवतदान चारण,हरीन्दर चौधरी , प्रो.मदनगोपाल शर्मा, डा.मनोहर शर्मा, सीताराम लालस, कोमल कोठारी, लाल कवि,श्रीलाल नथमल जोशी, परमेश्वर सौलंकी, सौभाग्यसिंघ शेखावत, प्रो.प्रेमचन्द विजयवर्गीय, श्रीलाल मिश्र, उमराव सिंह मंगळ, देवीलाल पालीवाल, सत्यनारायण प्रभाकर"अमन", हणूंतसिंह देवडा़, प्रल्हादराय व्यास, प्रो.शंभुसिंह मनोहर, डा.हीरालाल महेश्वरी, बुद्धिप्रकाश पारीक, रामवल्लभ सोमाणी, नरोतमदास स्वामी, मंगळ सक्सैना, सुमनेश जोशी, कुं.चन्द्रसिंह बिरकाळी, मूळजी व्यास, मूळचन्द जौहरी, महाराणी लक्ष्मी कुमारी चूंडावत, मुरलीधर व्यास, शंकर पारीक, सवाई सिंह धमोरा, रेवाशंकर, डा. नरेश भानावत, मूळचन्द सेठिया, रामनिवास शाह, हिम्मतलाल हिमकर नेगी, सीता राम पारीक, मनोहर प्रभाकर, कल्याणसिंह राजावत, रामकृष्ण बोहरा, रावत सारस्वत, जनार्दन राय नागर, प्रो.विद्याधर शास्त्री, गिरीश जी पांडेय, वेद व्यास, नेमीचन्द श्रीमाल, डा.सरनामसिंह शर्मा, औंकार सिंह [I.A.S.], कन्हैयालाल अर कामतागुप्त कमलेश
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" राजस्थानी नै संविधान में मानता कोनी मिली ! इण काम में श्री कन्हैयालाल माणकलाल मुंशी अगवा हा बै राजस्थान अर गुजरात नै भेळ’र राजस्थान पर गुजराती थौपणै रा सुपना देखता हा, जिकै सूं राजस्थानी री पुकार सुणी कोनी गई । राजस्थानी भाषा री आज री हालत री तुलना सो बरस पैली री हिन्दी सूं करां तो राजस्थानी भाषा हिन्दी सूं कित्ती ई जादा समर्थ अर प्राणवान ही । हिन्दी म्हारी राष्ट्रभाषा है पण इण रो ओ मतलब कोनी कै राजस्थानी म्हारी मातृभाषा कोनीं । हिन्दी नै जे दूजी प्रांतीय भाषावां सूं कोई खतरो कोनी तो फ़ेर राजस्थानी भाषा सूं खतरो किंयां होय सकै ! "
*श्री नरोत्तमदास स्वामी,भाषाविद, [राजस्थानी भाषा प्रचार सभा, जयपुर री गोठ में ,१८ सूं २० मार्च १९६६]
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"म्हे लोग राजस्थानी भाषा नै राजस्थान री मातृभाषा मानां अर हिन्दी नै राष्ट्रभाषा । जका लोग आ बात कैवै कै राजस्थानी भाषा री बढो़तरी सूं हिन्दी री हाण हुवै, बै बेईमान है ।"
* जनार्दनराय नागर , भाषाविद [राजस्थानी भाषा प्रचार सभा, जयपुर री गोठ में ,१८ सूं २० मार्च १९६६]
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" The Rajasthaani language , our source of communication and rich in values, has not been given its proper recognition as one of the regional lenguage in the Constitution.......We, the NRIs of rajasthani origin , resole and strongly feel that as this language is the main uniting force in a foregn land. immediate steps should be taken for the recognition of this language in the rajasthan assembly and to insert it in the Constitution of India. "
* K.K. Mehata, CPA, RANA[Rajasthani association of north america-5-7-2003]
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"नेतावां रै प्रताप सूं राजस्थान री मातभाषा हिन्दी घोषित होयोडी़ है । राजस्थान बरसां सूं हिन्दी री सेवा करतो आ रेयो है अर आगै भी करतो रैसी , पण राजस्थान री मातभाषा री वेळा हिन्दी रो नांव लेवणों करोडू़ राजस्थान्यां री भावनावां सागै खिलवाड़ करणो है । जद चुणावां रो मौको आवै तो नेताजी खुद आपरा भाषण राजस्थानी भाषा में देवै , बै जे सांचै मन सूं हिन्दी नै अठै री मातभाषा मानता होवै तो बांरा भासण भी हिन्दी में होंवता , राजस्थानी में नीं । राजस्थानी मातभाषा है, बा मा रै दूध सागै ई टाबर में प्रवेश करै, पण टाबर जद बडो होवै तो उण नै गाय रो दूध भी सेवन करणो पडै़। ऐक तो होवै आपणी जलम री देवाळ मा अर दूजी होवै गाय-माता । आ ई स्थिति भाषावां री है। मा रै दूध रो दरजो तो मात भाषा रो ई रैसी । हां,गाय रो दूध भी आगै चाल’र अपरिहार्य है, उण हालत में आखो राजस्थान-सगळो राजस्थान ऐक सुर में ,समवेत सुरां में हिन्दी अर फ़कत हिन्दी नै ई देश री सम्पर्क भाषा रै रूप में स्वीकारै पण मातभाषा रो पद तो खाली राजस्थानी भाषा खातर सुरक्षित है, उण माथै दूजो पग टेक सकै कोनीं ।"
* श्रीलाल नथमल जोशी,साहित्यकार,बीकानेर [आस्था रा आखर-कोलकाता]
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ANVER
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[] ओम पुरोहित 'कागद'
24 -दुर्गा कोलोनी
हनुमानगढ़ संगम - 335512 [ राजस्थान ]
खूंजे रो खुणखुणियों - 09414380571
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