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मंगलवार, 22 नवंबर 2011

पाठ-3,राजस्थानी भाषा अर व्याकरण

पाठ-3,राजस्थानी भाषा अर व्याकरण
                      [] ओम पुरोहित 'कागद'
 
भाषा मिनख रै संस्कारां ,मिनखपणैं अर  बिगसाव रो अडाण होवै । भाषा रै पाण ई मिनख अर समाज में जुडा़व होवै । मिनख अर समाज भाषा रै पाण ई एक-दूजै री मनगत जाणै । भाषा ई समाज नै एकरस करै । मिनख री बुधी री उंडाई उण रै सबद भंडार--सबद कोठार सूं ई होवै ! मिनख रै जकी कोठै होवै बा होठै सबदां रै पाण ई आवै । इणी रै ताण बो बिगसै ! उण रा... बिणज बोपार,खेती-बाडी़,उद्योग-धन्धा,रीत-नीत, तीज-त्यूंआर,सगाई-पताई, ब्यांव-उच्छाव,चाल-ढाल-बोवार आद सगळां में उण री भाषा अर उण रै सबदां री ओळ होवै । संस्कृति अर भौतिक बिगसाव ई भाषा रै सबद भंडार-कोठार रै पाण ।मिनख अर भाषा रो बिगसाव भेळा चालै ! मिनख रै सागै ई भाषा जामै --पछै तो बधै-फ़ळै अर संसकारित होवै ! मिनखा जूण अर भाषा री उमर इकसार ! मिनखां री भेळप बधै---आपस में हेळ-मेळ बधै तो लोक बणै ! ओ विराट लोक ई सबद नै जलमै -परोटै-बिगसावै अनै मुख सुख रै ताण उंचा जगती नै सूंपै ! संस्कारित जगती इण सबदां नै संस्कारित करै ! यानी सबद लोक में घडी़जै , किणी प्रयोगसाळा का भाषा शस्त्री अनै भाषा विग्यानी रै सांकडै़ नी ! जका सबद ठडै सूं हिन्दी में लारला 64 सालां में घडी़ज्या उणां नै हाल ताईं लोक सीकार नीं करियो ! [ ऐ सबद भारत सरकार रै  कोसां में उनटच पडिया है ] लोक तो उणी सबद नै सीकारै जिण नै बो खुद घडै़-टांचै-परखै - परोटै अर बरतै । सबद बणावण अर बिगसावण में बोल्यां रो हाथ लूंठो होवै । बोली सबद घडै़ अर भाषा उण सबद नै टांचै । राजस्थानी भाषा इण सूं निरवाळी नीं ।

दुनियां री सगळी भाषावां रा तीन रूप होवै
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1- लोक भाषा [ बोली]
2-मुख सुख री भाषा [बोल-चाल]
3 -टंकसाळी भाषा  [ अकादमिक]

                      भाषा लोक में जामै -बधै । पै’ली ध्वनि , पछै बोली अर छेकड़ भाषा बणै   ।  दुनियां री सगळी भाषावां इयां ई जलमी  !  भाषा विग्यानी अर भाषा शास्त्री जेडा़ फ़दड़ पंच तो भोत बाद में जामै  । भाषा सरुआत में मुखसुख सूं चालै अर पछै टंकसाळी रूप धारण करै ।राजस्थानी भाषा सातवै सईकै [ सातवीं शताब्दि ] में जलमी । बधी अर जणै-कणैं रै मुंडां ढूकी ! इण रै बाद आ कांण -कायदां में बंधी । टंकसाळी रूप धरण करियो । पछै इण भाषा में सिरजण रो बायरो बग्यो ।   सातवैं सईकै सूं लेय’र आज ताईं लाखां ग्रंथ रचीज्या-सिरजीज्या । राजस्थानी भाषा रो सिरजण भंडर-कोठार अखूट-अकूंत अर अकूत है । हाल लाखां जूनां ग्रंथा री पांडुलिप्यां राजस्थान अर भरत सरकार रै अरकाइज विभाग री कैद में पडी़ है अर छपाई नै उडी़कै ।
                   राजस्थानी भाषा रो ओ टंकसाळी रूप इण रै  सबद भंडार-कोठार अर व्याकरण रै पाण ई होयो । बिना व्याकरण कोई भी भाषा बधै नी--थम जावै । राजस्थानी भाषा में लाखां ग्रंथ होवणों अर कदै ई राज री भाषा होवणो ओ साफ़-साफ़ दरसावै कै ऐडी़ सबळी अर जूनी भाषा रो कोई तो व्याकरण हो ई  ! हो सा , हो ! पै’लो तो लोक व्याकरण जको कळजां में हो लोगां रै । राजस्थानी भाषा लोक भाषा बजै ! राजस्थानी में आप जाणों लोक गीत-लोक-गाथा-कोथ-कैबा-बाणी-दूहा-हरजस-पड़-पवाडा़ आद भोत है अर सगळा जबानी चालै । पण सगळा भाषा , व्याकरण ,रस सिद्धान्त,अर छन्दां रै आंटै साव खरा बजै । इणां रा कांण - कायद देख भाषा शात्री आपरी आंगळ्यां चाब लेवै । तो इण सूं साफ़ है कै जद लोक में श्रुत रूप में इत्तो सांतरो अर टंकसाळी साहित्य हो तो लोक में ई श्रुत रूप में व्याकरण भी  जरूर हो ।
राजस्थानी भाषा रो आज रो टंकसाळी रूप व्याकरण रै कारण ई त्यार होयो । आज राजस्थानी भाषा अर ऊन री बोल्यां में रा अलेखूं छप्या-अणछप्या व्याकरण आपां रै सांकडै़ है । जिण भांत बोली सूं भाषा अर भाषा सूं टंकसाळी भाषा बणै उणी भांत व्याकरण भी जलमै-बिगसै-सुधरै अर टंकसाळी रूप धारै । भाषा अर व्याकरण री आ लगोलग जातरा चालती रैवै ।

राजस्थानी भाषा रै व्याकरण री जातरा
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                          राजस्थानी भाषा रो पै’लो अर लूंठो व्याकरण श्रुत में इज है ! चारण कवियां नै ईण में महारत हासल ही ! लिखत-पढत रो काम अर साहित्य सिरजण रो घणखरो काम चारण ई करता ! इण कारण व्याकरण-छन्द,रस  आद रो समूळो ग्यान-ध्यान चारणां नै ई हो ! सतरवैं सईकै ताईं आवंता-आवंतां राजस्थानी भाषा  घणीं राती-माती अर ठरकै आळी भाषा कथीजती । ईन रै बोलणियां री गवाडी़ भोत मोटो-ठाडी अर भांत भंतीली ही जकी आखी दुनियां में पसरियोडी़ ही । आज रै समूळै राजस्थान ,गुजरात,मध्यप्रदेश,नेपाल,पंजाब.हरियाणां ,हिमाचल ,पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान. अर रूस ताईं ईण री बोल्यां बोलणियां रो पसराव हो । इणीज कारण इण रै बोलण रो ढंग ढाळो भांत-भंतीलो अनै इणीज कारण इण रा व्याकरण भी भांत भंतीला । राजस्थानी भाषा उड़दू भाशा में भी लिखीजै सो उड़दू [ पाकिस्तान में ] में भी राजस्थानी व्याकरण लिखीज्या । पाकिस्तान में जनाब बाग अली सोक " राजस्थानी जबान ओ अदब " [ उड़दू  में ] नांव रो राजस्थानी व्याकरण लिख्यो जको बठै रै चौहाण पब्लिकेशन,गजदराबाद,कराची सूं छप्यो ।

                       आज सूं कोई अस्सी बरस पै’ली जोधपुर रा पं रामकरण जी आसोपा पोथी रूप पै’लो राजस्थानी व्याकरण आपां री निज़र करियो--"मारवाडी़ रो व्याकरण " । इटली रा विद्वान एल.पी.टेस्सेटोरी भी राजस्थानी व्याकरण लिख्यो ।  सन 1954 में पदमश्री सीताराम जी लालस रो " राजस्थानी व्याकरण" साम्ही आयो ।  ओ व्याकरण डा. नीरज दइया  [ फ़ेस बुक आळा आपणां भायला ] रै सम्पादन में राजस्थानी भाषा एवम संस्कृति अकादमी , बीकानेर री पत्रिका " जागती जोत " रै बरस-31, अंक- 9 -10 , 11 दिसम्बर सूं फ़रवरी  2003 में समूळो छप्यो । डा.बी.एल. माळी रो " छात्र उपयोगी राजस्थानी व्याकरण " भी छप’र आयो जक भोत चर्चित रैयो । अमेरिका अर जरमनी में भी राजस्थानी व्याकरण लिखीज्या है । अमेरिका में अबार डा. लखन गुसांईं  राजथानी भाषा रो लूंठो व्याकरण लिख रै’या है ।

 [] ओम पुरोहित 'कागद'
    24 -दुर्गा कोलोनी
   हनुमानगढ़ संगम - 335512 [ राजस्थान ]
  खूंजे रो खुणखुणियों - 09414380571

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