पाठ-3,राजस्थानी भाषा अर व्याकरण
[] ओम पुरोहित 'कागद'दुनियां री सगळी भाषावां रा तीन रूप होवै
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1- लोक भाषा [ बोली]
2-मुख सुख री भाषा [बोल-चाल]
3 -टंकसाळी भाषा [ अकादमिक]
भाषा लोक में जामै -बधै । पै’ली ध्वनि , पछै बोली अर छेकड़ भाषा बणै । दुनियां री सगळी भाषावां इयां ई जलमी ! भाषा विग्यानी अर भाषा शास्त्री जेडा़ फ़दड़ पंच तो भोत बाद में जामै । भाषा सरुआत में मुखसुख सूं चालै अर पछै टंकसाळी रूप धारण करै ।राजस्थानी भाषा सातवै सईकै [ सातवीं शताब्दि ] में जलमी । बधी अर जणै-कणैं रै मुंडां ढूकी ! इण रै बाद आ कांण -कायदां में बंधी । टंकसाळी रूप धरण करियो । पछै इण भाषा में सिरजण रो बायरो बग्यो । सातवैं सईकै सूं लेय’र आज ताईं लाखां ग्रंथ रचीज्या-सिरजीज्या । राजस्थानी भाषा रो सिरजण भंडर-कोठार अखूट-अकूंत अर अकूत है । हाल लाखां जूनां ग्रंथा री पांडुलिप्यां राजस्थान अर भरत सरकार रै अरकाइज विभाग री कैद में पडी़ है अर छपाई नै उडी़कै ।
राजस्थानी भाषा रो ओ टंकसाळी रूप इण रै सबद भंडार-कोठार अर व्याकरण रै पाण ई होयो । बिना व्याकरण कोई भी भाषा बधै नी--थम जावै । राजस्थानी भाषा में लाखां ग्रंथ होवणों अर कदै ई राज री भाषा होवणो ओ साफ़-साफ़ दरसावै कै ऐडी़ सबळी अर जूनी भाषा रो कोई तो व्याकरण हो ई ! हो सा , हो ! पै’लो तो लोक व्याकरण जको कळजां में हो लोगां रै । राजस्थानी भाषा लोक भाषा बजै ! राजस्थानी में आप जाणों लोक गीत-लोक-गाथा-कोथ-कैबा-बाणी-दूह
राजस्थानी भाषा रो आज रो टंकसाळी रूप व्याकरण रै कारण ई त्यार होयो । आज राजस्थानी भाषा अर ऊन री बोल्यां में रा अलेखूं छप्या-अणछप्या व्याकरण आपां रै सांकडै़ है । जिण भांत बोली सूं भाषा अर भाषा सूं टंकसाळी भाषा बणै उणी भांत व्याकरण भी जलमै-बिगसै-सुधरै अर टंकसाळी रूप धारै । भाषा अर व्याकरण री आ लगोलग जातरा चालती रैवै ।
राजस्थानी भाषा रै व्याकरण री जातरा
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राजस्थानी भाषा रो पै’लो अर लूंठो व्याकरण श्रुत में इज है ! चारण कवियां नै ईण में महारत हासल ही ! लिखत-पढत रो काम अर साहित्य सिरजण रो घणखरो काम चारण ई करता ! इण कारण व्याकरण-छन्द,रस आद रो समूळो ग्यान-ध्यान चारणां नै ई हो ! सतरवैं सईकै ताईं आवंता-आवंतां राजस्थानी भाषा घणीं राती-माती अर ठरकै आळी भाषा कथीजती । ईन रै बोलणियां री गवाडी़ भोत मोटो-ठाडी अर भांत भंतीली ही जकी आखी दुनियां में पसरियोडी़ ही । आज रै समूळै राजस्थान ,गुजरात,मध्यप्रदेश,नेपाल,पंजाब
आज सूं कोई अस्सी बरस पै’ली जोधपुर रा पं रामकरण जी आसोपा पोथी रूप पै’लो राजस्थानी व्याकरण आपां री निज़र करियो--"मारवाडी़ रो व्याकरण " । इटली रा विद्वान एल.पी.टेस्सेटोरी भी राजस्थानी व्याकरण लिख्यो । सन 1954 में पदमश्री सीताराम जी लालस रो " राजस्थानी व्याकरण" साम्ही आयो । ओ व्याकरण डा. नीरज दइया [ फ़ेस बुक आळा आपणां भायला ] रै सम्पादन में राजस्थानी भाषा एवम संस्कृति अकादमी , बीकानेर री पत्रिका " जागती जोत " रै बरस-31, अंक- 9 -10 , 11 दिसम्बर सूं फ़रवरी 2003 में समूळो छप्यो । डा.बी.एल. माळी रो " छात्र उपयोगी राजस्थानी व्याकरण " भी छप’र आयो जक भोत चर्चित रैयो । अमेरिका अर जरमनी में भी राजस्थानी व्याकरण लिखीज्या है । अमेरिका में अबार डा. लखन गुसांईं राजथानी भाषा रो लूंठो व्याकरण लिख रै’या है ।
[] ओम पुरोहित 'कागद'
24 -दुर्गा कोलोनी
हनुमानगढ़ संगम - 335512 [ राजस्थान ]
खूंजे रो खुणखुणियों - 09414380571
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