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मंगलवार, 22 नवंबर 2011

पाठ-11 , राजस्थानी आखरमाळा

पाठ-11 , राजस्थानी आखरमाळा
                  [] ओम पुरोहित 'कागद'
 
मुंडै सूं बोलीजै जकी बोली । बोली रो कायदां में बंध्योडो रूप भाषा । बोलीजण आळी भाषा नै जिण ऐनाणां सूं लिखीजै बै आखर बजै । आखरां री लडी नै आखरमाळा कथै । राजस्थानी भाषा में भी एक सबळी आखरमाळा है ।  राजस्थानी आखरमाळा में कुल 50 आखर होवै । आं आखरां रा दोय भेद होवै :-

1-बिलाठी [ स्वर ]
आं रो उच्चरण  सांस रै सागै  सुतंतर... रूप सूं होय सकै |

2-कक्को [ व्यंजन]
कक्कां रो उच्चारण सुतंतर रूप सूं नीं होय सकै ।


1-बिलाठी [ स्वर ]

            बिलाठी रो मुतलब दो / बे लाठी । दोय लीकटी । सरूआत में बिलाठी खडी अर आडी होंवती ।
            राजस्थानी भाषा री आखरमाळा में कुल 12  बिलाठी है :-

            अ  आ  इ  ई  उ  ऊ  ए  ऐ  ओ  औ  [ अं ]  आ: ॐ


2-कक्को- राजस्थानी आखरमाळा में कुल 38 कक्का है :-

क ख ग घ ड
च छ ज झ ञ

ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ़ ब भ म
य र ल  व
श स ष ह
ळ ड़ .ध .व   . [ लीकटी रै माथै अनुस्वार]    :   [विसर्ग ]

खास बात
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[] राजस्थानी में बाद में " श ष अर स" में सूं फ़गत "स " ई काम में लीरीजण लाग गियो बाकी दूजा "श ष" नै       छोड दिया । यानी राजस्थानी भाषा में एक ई " स " होवै ।
[] कक्कियै रो उच्चारण बिलाठी रै भिळण सूं ई होय सकै ।
[] जियां- "आल" रो उच्चारण "आ" रै कारण इज ।
   "आ" नै अळगो करां तो "ल" बंचै अर "ल" में भी"अ" भिळ्योडो होवै ।
    इण "अ" नै भी हटावां तो "म" रो भी उच्चरण नीं होय सकै ।

कक्कियै री भणाई
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राजस्थान में जूनी पोसाळां में "कक्कै" री सांगोपंग भणाई होवंती । कक्कियै री भणाई री निरवाळी रीत ही जकी किणीं दूजी भाषा मे नीं ही  ।हिन्दी तो हाल ताईं ऐडो नीं करवा सकी । आ भणाई संगीत अनै कक्कियै नै भेळ’र कराईजती ही । आ "मुहाळणी" का "मुहारणीं" कथीजतो । जूना मारजा आज सूं 65 बरस पै’ली ताईं पोसाळां में मुहाळणी बोलावंता । मुहाळणी गाईजती अर सगळी भणाई मुखजबानी [ कंठै ] ई हो जावंती । इण भणाई नै "गुणी" कैवंता । गुणी में बिलाठी , कक्को , हिसाब-किताब अर पावडा बोलीजता । मारजा आगै -आगै बोलता अर लारै-लारै भणेसरी बोलता  अनै राग टेरता । इण रीत सूं समूळी भणाई कंठै हो जावंती । सीख देवण आळी बातां अर बोवार में काम आवण वाळी बातां इण मुहाळणीं अर गुणीं में सिखाईजती जकी आखी जूण काम आवंती ।

[]  मुहाळणीं/मुहारणीं=मुंडै सूं बोलीजण आळी।
[]  गुणीं= गुणणीं
[]  भणाई=पढाई
[]  पोसाळ में भणावण री विद = पै’ली मुहाळणीं / मुहारणीं, पछै भणाई अर छेकड में गुणीं

 [] ओम पुरोहित 'कागद'
    24 -दुर्गा कोलोनी
   हनुमानगढ़ संगम - 335512 [ राजस्थान ]
  खूंजे रो खुणखुणियों - 09414380571

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