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मंगलवार, 22 नवंबर 2011

पाठ-12, राजस्थानी आखरमाळा री मुहाळणीं
                                            [] ओम पुरोहित 'कागद'
 
राजस्थान री जूनी पोसाळां में "कक्कै" री सांगोपंग भणाई होवंती । कक्कियै री भणाई री निरवाळी रीत ही जकी किणीं दूजी भाषा मे नीं ही  । एक - एक आखर  [ बिलाठी-कक्कियो ] रा चितराम कोरती  मुहाळणीं / मुहारणीं गाईजती जाकी  टाबरां ने आखी जूण चेते रेवती | हिन्दी तो हाल ताईं ऐडो नीं करवा सकी । आ भणाई संगीत , बिलाठी  अनै कक्कियै नै... भेळ’र कराईजती ही । आ "मुहाळणी" का "मुहारणीं" कथीजतो । जूना मारजा आज सूं 65 बरस पै’ली ताईं पोसाळां में मुहाळणी बोलावंता । मुहाळणी गाईजती अर सगळी भणाई मुखजबानी [ कंठै ] ई हो जावंती । इण भणाई नै "गुणी" कैवंता । गुणी में बिलाठी , कक्को , हिसाब-किताब अर पावडा बोलीजता । मारजा आगै -आगै बोलता अर लारै-लारै भणेसरी बोलता  अनै राग टेरता । इण रीत सूं समूळी भणाई कंठै हो जावंती । सीख देवण आळी बातां अर बोवार में काम आवण वाळी बातां इण मुहाळणीं अर गुणीं में सिखाईजती जकी आखी जूण काम आवंती ।

[]  मुहाळणीं/मुहारणीं=मुंडै सूं बोलीजण आळी।
[]  गुणीं= गुणणीं
[]  भणाई=पढाई
[]  पोसाळ में भणावण री विद = पै’ली मुहाळणीं / मुहारणीं, पछै भणाई अर छेकड में गुणीं

राजस्थानी आखरमाळा  री मुहाळणीं
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1-बिलाठी री मुहाळणीं / मुहारणीं
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अ-आ = आईड़ा-आइडा दो भाइडा [ अ +अ =आ  ]
आ=बडे भाई कानां                  [अ+आ री लगमात ] अ रै आ री लगमात रो कान  लागियो |
इ + ई = इडी - ईडी दो  बेना
     ई =ई बड़ी बेन  चोटियां             [ बड़ी बेन रे चोटी पण छोटी बेन रे चोटी कोनी ]
उ -ऊ =उड़ा -उड़ा दो भाई
उ-उड़ा = उड़ा -ऊड़ा दो छोटा -मोटा ऊँटिया
     ऊ =ऊंटा लदी कतार
ए = एको एकलो
ऐ = एका ऊपर  लाकड़ी
ओ= ओ बैठो ओठियो
औ = दो-दो मात औरणियों


२-  कक्किये री मुहाळणीं / मुहारणीं
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क = कक्कियो कोड़ को / कक्कियो कोड़ रो  / कक्कियो केवालियो / कक्कियो केवड़ो
       [ यानी क किसो ? क कोड़ आल़ो/ कोड़ में  लागे जाको  !  क बो  जाको केवालिये में लागे जाको ! क बो जाको केवड़े में लागे ]
ष= षषा षूणा चीरियो [ राजस्थानी में देवनागरी लिपि आवण सूं पैली " ख " नी हो संस्कृत री भान्त "  ष " धुनी " ख " ही |]
ख = खख्खो खाजूलो [ टाबरां रै खावण री खाजली ]
ग=गग्गा गोरी गाय
घ=घघ्घा घाट पिलाने जाय
ड़- नन्ना खंडो चान्दियो
च= चिड़े चिडी री चूंच
छ =छछिया  पिचिया पोटला
ज =जजजा  जेर बाणियों
झ=झझ्झा झाड की लाकडी
ञ=अंडै बांडो चंद्रमा [  खांडै अंडै जेड़ो ] [ हिंदी में तो 'ञ' खाली है ]
ट=टट्टिया टट्टिया दो  पोड़ी
ठ=ठठिया ठाकर गांठडी
ड= डडडा कूकर पूंछडी
ढ = ढढढा ढेर बाणियों
ण = राणो ताणे तेल /  राणों ताणे तीन लाकडी  [ हिंदी में तो 'ण ' खाली है ]
त=तत्तो  तत्तूतियो कान को
थ = थथ्थियो थावर
द= ददियो दीवटो
ध= धध्धो धाणक छोडयां जाए
न= आगे नन्नो  भाज्यां जाए
प = पप्पा पटकी पाटकी
फ = फफ्फो फालिंगो
ब= बब्बा बेंगण बाड़ी रा / बब्बा बाड़ी बैंगणियाँ
भ = भभ्भा भाभजी भटारको / भभ्भा मूंछ कटारकी
म= मम्मा ले कसारकी
य = यय्या यय्या पाटलो
र = र रा  रो रींकलो
ल = लल्ला लल्ला लापसी
व= वव्वा वैंगण  वासदे
श =शाश्शी सौलंकी
ष= षषषो  खांडको
ह = ह हा  हा हिन्दोली / ह हा हां बोल़ो
: = अड़े तड़े दो बिन्दोली
======

 [] ओम पुरोहित 'कागद'
    24 -दुर्गा कोलोनी
   हनुमानगढ़ संगम - 335512 [ राजस्थान ]
  खूंजे रो खुणखुणियों - 09414380571

पाठ-11 , राजस्थानी आखरमाळा

पाठ-11 , राजस्थानी आखरमाळा
                  [] ओम पुरोहित 'कागद'
 
मुंडै सूं बोलीजै जकी बोली । बोली रो कायदां में बंध्योडो रूप भाषा । बोलीजण आळी भाषा नै जिण ऐनाणां सूं लिखीजै बै आखर बजै । आखरां री लडी नै आखरमाळा कथै । राजस्थानी भाषा में भी एक सबळी आखरमाळा है ।  राजस्थानी आखरमाळा में कुल 50 आखर होवै । आं आखरां रा दोय भेद होवै :-

1-बिलाठी [ स्वर ]
आं रो उच्चरण  सांस रै सागै  सुतंतर... रूप सूं होय सकै |

2-कक्को [ व्यंजन]
कक्कां रो उच्चारण सुतंतर रूप सूं नीं होय सकै ।


1-बिलाठी [ स्वर ]

            बिलाठी रो मुतलब दो / बे लाठी । दोय लीकटी । सरूआत में बिलाठी खडी अर आडी होंवती ।
            राजस्थानी भाषा री आखरमाळा में कुल 12  बिलाठी है :-

            अ  आ  इ  ई  उ  ऊ  ए  ऐ  ओ  औ  [ अं ]  आ: ॐ


2-कक्को- राजस्थानी आखरमाळा में कुल 38 कक्का है :-

क ख ग घ ड
च छ ज झ ञ

ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ़ ब भ म
य र ल  व
श स ष ह
ळ ड़ .ध .व   . [ लीकटी रै माथै अनुस्वार]    :   [विसर्ग ]

खास बात
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[] राजस्थानी में बाद में " श ष अर स" में सूं फ़गत "स " ई काम में लीरीजण लाग गियो बाकी दूजा "श ष" नै       छोड दिया । यानी राजस्थानी भाषा में एक ई " स " होवै ।
[] कक्कियै रो उच्चारण बिलाठी रै भिळण सूं ई होय सकै ।
[] जियां- "आल" रो उच्चारण "आ" रै कारण इज ।
   "आ" नै अळगो करां तो "ल" बंचै अर "ल" में भी"अ" भिळ्योडो होवै ।
    इण "अ" नै भी हटावां तो "म" रो भी उच्चरण नीं होय सकै ।

कक्कियै री भणाई
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राजस्थान में जूनी पोसाळां में "कक्कै" री सांगोपंग भणाई होवंती । कक्कियै री भणाई री निरवाळी रीत ही जकी किणीं दूजी भाषा मे नीं ही  ।हिन्दी तो हाल ताईं ऐडो नीं करवा सकी । आ भणाई संगीत अनै कक्कियै नै भेळ’र कराईजती ही । आ "मुहाळणी" का "मुहारणीं" कथीजतो । जूना मारजा आज सूं 65 बरस पै’ली ताईं पोसाळां में मुहाळणी बोलावंता । मुहाळणी गाईजती अर सगळी भणाई मुखजबानी [ कंठै ] ई हो जावंती । इण भणाई नै "गुणी" कैवंता । गुणी में बिलाठी , कक्को , हिसाब-किताब अर पावडा बोलीजता । मारजा आगै -आगै बोलता अर लारै-लारै भणेसरी बोलता  अनै राग टेरता । इण रीत सूं समूळी भणाई कंठै हो जावंती । सीख देवण आळी बातां अर बोवार में काम आवण वाळी बातां इण मुहाळणीं अर गुणीं में सिखाईजती जकी आखी जूण काम आवंती ।

[]  मुहाळणीं/मुहारणीं=मुंडै सूं बोलीजण आळी।
[]  गुणीं= गुणणीं
[]  भणाई=पढाई
[]  पोसाळ में भणावण री विद = पै’ली मुहाळणीं / मुहारणीं, पछै भणाई अर छेकड में गुणीं

 [] ओम पुरोहित 'कागद'
    24 -दुर्गा कोलोनी
   हनुमानगढ़ संगम - 335512 [ राजस्थान ]
  खूंजे रो खुणखुणियों - 09414380571

पाठ-10,राजस्थानी व्याकरण अर उण रा विभाग

पाठ-10,राजस्थानी व्याकरण अर उण रा विभाग
                      [] ओम पुरोहित "कागद"
 
माणस आपरी बात भाषा रै आंटै ई करै । बो आपरी  मनगत बोल , लिख अर सैन सूं परगट करै अर दूजै री मनगत सुण , पढ अनै देख’र जाणैं ।  मनगत नै परगट करण रो ओ साधन ई भाषा बजै । भाषा रा ऐ तीन रूप बजै-
1-ओळी [ वाक्य ]
2-सबद
3-आखर

... जद कोई आपरी बात कै’वै तो बो "ओळी" में ई कै’वै । जियांं :-
-"बांसवाडो़ भोत सांतरो ज़िलो है ।"
--"म्हैं जीम सूं अर पाणीं पी सूं ।"

ओळी में न्हानीं इकाई "पद" बजै । इणीज पद नै सुतंतर रूप में "सबद " कथीजै यानै ओळी में होयां "पद" अर निरवाळो होयां पद पछै  "सबद" । एक सूं बेस्सी कामल सबदां रै मेळ सूं ओळी बणै । ओळी एक सबद री भी होय सकै । जियां :-
-आ !          -जाओ  !        -खाओ !
-जीमो !       -सुणो !         -नाचो !
-गयो ।          -कद ?         -आज ।
-देखो !          -ल्यो !        -खोल्यो ।
-हां !             -कांईं ?      -पगैलागूं !

एक सबद री ओळी फ़गत बोल-चाल में ई बरतीजै । घणखरी ओळी दो का पछै दो सूं बेस्सी सबदां सूं ई बणै । जियां :-
-बेगो आई !
-ठीक सा !
-भंडाण रा मतीरा भोत मीठा होवै ।
-आबू रै डूंगरां मोर बोलै ।

विराम  आद ऐनाणां सूं भी भाव परगट होवै । जियां :-
 -हां।
-हां !
-हां ?
-अच्छा ।
-अच्छा !

राजस्थानी में खाली सबदां/करम रै साथै किरिया लुक्योडी़ होवै । पछै चावै उण सबद में किरिया सबद होवो ई नीं । जियां :-
-राम-राम ! [ राम-राम सा ]
--पगैलागूं ! [ पगां रै हाथ लगाऊं । ]
-खाऊं । [ खा रै’यो हूं ।]

राजस्थानी में ओळी कई भांत री होवै । ओळी में पूछीजै , अचंबो करीजै ,हुकुम दीरीजै , मनगत कथीजै अर कदै-कदै ई साआ विचार ई परगट करीजै । इण विध ओळी रा पांच भेद बणै :-

1- कायदै आळी ओळी =इण ओळी पेटै बात बताईजै , एक दूजै सूं किणीं बात री हामळ भरवाईजै  का पछै मनां करीजै/बरजीजै । जियां :-
-बोरियो मीठो है ।
-काल आंधी आई ही नीं ?
-म्हारै खनै कुड़तो कोनी ।
-कांदा ना खाया -भलोक !

2-पूछणीं ओळी= इण ओळी सूं पूछीजै । जियां :-
-ओमियों कठै ?
-मतीरो कित्तै रो है ?
-थारो नांव कांईं है बाई ?
-गांव में कित्ता घर है ?

3-भोळावणीं ओळी=इण ओळी पेटै  हुकुम  , राय  अर अरज रो ग्यान होवै । जियां :-
-अभी जाओ !
- अबकै सिरेपंच किण नै बणावां ?
-म्हनै जीमण देवो नीं सा ।

4-मनस्या ओळी = इण ओळी सूं आसीस का पछै दुरासीस दीरीजै । भलो करण - होवण री मनस्या परगट करीजै का ठाह लागै । जियां :-
-हज़ारी उमर होवै थारी !
-पड़ कूए में !
 -बो तो मर ई सी !
-थूं कदै ई सुख नीं पावै ।
-बेईमान रो खैनास होवै ।
-भली करसी भगवान !

5-अचंबो परगटावणीं ओळी=इण ओळी में  इचरज , हरख , दुख अद अचंबै आळा भाव परगटीजै । जियां :-
-अरे ! ओ इत्तो फ़ूटरो !
-कमाल है , भूपेन्दर पास होग्यो !
-मारणों गोधो मरग्यो ।
-बापडां री मा मरगी ।
-ठाट ई आग्या आज तो !

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आखरिकता
======

एक समूळी ओळी में कई - कई सबद होवै । एक अरथवाण / कामल  ओळी नै तोड़्यां सबद मिलै । हरेक सबद रा न्यारा-न्यारा अरथ होवै । पण ओळी में भेळा करयां  पद बणै । जियां :-
-"काळा-धोळा मत कर बावळा भाई ।"
एक सबद में कई आखर होवै । आखर टूटै नीं । सबद पण टूटै । सबद नै तोड़’र न्यारा-न्यारा करीज सकै ।सबद नै तोड़ आखर आखर खिंडावण नै ई आखरिकता कथीजै । बानगी देखो :-
घटूलियो = घ+अ+ट+ऊ+ल+इ+य+ओ
हिन्दी अर राजस्थानी में आखरिकता [ आक्षरिकता ] सफ़ा न्यारी-न्यारी है । जियां :-
खख्ड़धज+ खक+खड़+धज ---ऐ तीनूं आखरिक टुकडा़ बोलीजण में आवै । राजस्थानी में जियां बोलीजै बियां ई लिखीजै  अर जियां लिखीजै बियां ई बोलीजै । पण हिन्दी में इयां नीं चालै । दो आखर भेळा आयां आपां  दूजै आखर नै पै’लै आखर रू्प मॆं बोलां । जियां :-
खख=खक--आपां पै’लै "ख" नै "ख" ई अर दूजै "ख" नै "क" बोलां ।
पै’लदो़ अर दूजो आखर अकारान्त है तो दूजै आखर नै अकारान्त नीं राखां ।
जियां :- धज = धज [ छेकड़लै आखर "ज" में "अ" नीं बोलां ]
एक ई वरग रा दो आखर सारै-सारै यानी लगोलग आवै तो राजस्थानी सबद में पै’लडो़ सबद      लुक    [ लुप्त] जावै । जियां :- युद्ध=जुध ,      बुद्ध=बुध    ,      सुद्ध= सुध

महापिराण सूं पै’ली जे अल्पविराम  आळा आखर आवै अर आधो होवै तो उण नै पूरो बोलां -लिखां । जियां :-
महत्व =महत , शब्द=सबद , धर्म=धरम , शर्म= सरम , कर्म =करम , प्रकस = परकास आद

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व्याकरण रा भाग
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व्याकरण रा तीन भाग होवै :-

1-आखर भाग [ वर्ण ]=
इण भाग में आखरां रो विचार्त होवै । आखरां री बणावट ,डोळ ,उच्चरण अनै उणां री भेलप बखाणीजै

2-सबद भाग=
इण भाग में सबदां रा भेद ,सबदां रा बदळाव अर सबद री बणावट आद रो विचार होवै ।

3-ओळी भाघ=
इण भाग में ओळी री बणावट , ओळी में आया थका सबदां रा नाता , ओळी बणावण रा कायदा , ओळ्यां रा भेद अर ओळी रै
छेकड़ में लागण आळा अरथवाण /कामल ऐनाण [ विराम आद चिह ] आद रो विचार होवै ।
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[] ओम पुरोहित "कागद"
24-दुरगा क्लोनी
हनुमानगढ़ संगम-335512
खूंजै रो खुणखुणियों-09414380571

पाठ-9,राजस्थानी में भणाई जरूरी

पाठ-9,राजस्थानी में भणाई जरूरी
                   [] ओम पुरोहित 'कागद'
 
जिण विध अलेखूं छेतरीय बोल्यां-भाषावां नै आपरै भीतर अंवेरती-सांवटती हिन्दी अनै दूजी भाषावां सांवठी अर लूंठी भाषावां है उणीज भांत राजस्थानी भाषा भी आपरी 73 बोल्यां नै आपरै भीतर अंवेरती-सांवटती ऐक लूंठी अनै थिर-सबळी भाषा है ! जिण भांत हिन्दी नांव री कोई निरवाळी भाषा नीं पण कईऐक भारतीय  भाषावां [43  भाषावां-बोल्यां ] ...रै समूह नै भेळ’र हिन्दी भाषा कथीजै ! यानी 43 बोल्यां री नेता बोली है हिन्दी ! इणीज भांत राजस्थानी भी कोई निरवाळी भाषा का बोली नीं  पण आपरी 73 बोल्यां री धिराणीं है ! आपरी 73 बोल्यां री नेता भाषा है ! यानी राजस्थान री सगळी बोल्यां रो ऐकठ नांव है राजस्थानी भाषा ! इण बात सूं कई लोग जाण बूझर’र अळगो मतो राखै , यानी कान्नां में कोवा लेवै । पण बां रो अंतस सांच सूं मुकर नी सकै ! ऐडा़ लोग निरमूळ चिन्ता करै कै मेवाडी़, वागडी़,ढुंढाडी़,हाडो़ती,शेखावाटी,मेवाती आद 73 बोल्यां  में सूं कुणसी है राजस्थानी ? ऐडा़ डोफ़्फ़ा लोग इण सांच नै जाणै कै आं बोल्यां री धिराणी ई राजस्थानी है ! बै लोग इण बात रो उथळो आज तांईं नीं दियो कै जे ऐ बोल्यां राजस्थानी भाषा री बोल्यां नीं है तो भळै किण भाषा री बोल्यां है ? ऐ डोफ़्फ़ा जाण बूझ’र  ईं सांच नै  चित नी चितारै कै जिण भांत लारलै सईकै सूं लेय’र हाल तांईं अवधि, बुन्देली, खडी़ बोली, मैथिली,छत्तीसगढी़,ब्रज, अर राजस्थानी हिन्दी में ऐक बोली रै रूप में भणाइजती ही ठीक उणीज भांत राजस्थानी में भी मेवाडी़, वागडी़,ढुंढाडी़,हाडो़ती,शेखावाटी,मेवाती आद 73 बोल्यां ठरकै साथै राजस्थानी में भणाईजसी ! जद हिन्दी री भणाई में  अवधि, बुन्देली, खडी़ बोली, मैथिली,छत्तीसगढी़,ब्रज, अर राजस्थानी  आद बोल्यां अबखाई नें करी तो राजस्थानी भाषा री घर जाई बेट्यां सरीखी उण री बोल्यां मेवाडी़,  वागडी़, ढुंढाडी़, हाडो़ती, शेखावाटी, मेवाती आद 73 बोल्यां राजस्थान में भणाई अनै राज-काज में कियां अनै क्यूं अबखाई खडी़ करसी ? आ बात कोई नीं तो समझै अर नीं समझावै !
                 राजस्थानी भाषा में 73 बोल्यां है तो इण में अपरोगो कांईं है-आ तो ईण री जगचावी खासीयत है-त्यागत है ! दुनियां री कुणसी भाषा में बोल्यां नीं ?  संविधान री आठवीं अनुसूची में भेळीजी थकी भारत री 22 भाषावां में भी 6 सूं लेय’र 65 तक बोल्यां है । गुजराती-27, तमिल-22 , मरठी-65 , बंगाले- 15, पंजाबी- 29, कोंकणीं- 16, उडि़या-24 , नेपाली-06 , मलयालम-14 , कन्नड़-32 , तेलगु- 36, अंग्रेजी- 57, अर हिन्दी में 43 -  बोल्यां है । पण "ठाडै रो डोको डांग नै पाडै़" जीडी़ ई बात---ऐ सगळी भाषावां ठरकै सूं आठवीं अनुसूची में भी सामल है ,राज्यां री दूजी भाषावां  अनै राजभाषावां भी है ! इण में सूं कई भाषावां री तो खुद री लिपि भी नीं है ! जद आं सगळी भाषावां रै ऐक भाषा होवण में फ़रक नीं तो फ़गत अर फ़गत राजस्थानी भाषा अनै राजस्थान्यां सारू फ़रक क्यूं ? ऐक ई देश में कोई चीज  तय करण रा न्यारा-न्यारा मानदंड क्यूं ?

                 भाषा री एकरूपता री बात अनै चिन्ता सगळी दुनियां री भाषावां में रै’वै ! इण सारू दुनियां रा सगळा देश आप - आपरै अठै भाषा विभाग चलावै जको बगत-बगत माथै नया बदळाव करै अर राज रा फ़रमान काढ’र उणां नै बपरावण री हिदायत देंवता रै’वै ! हिन्दी  भी जकी आज है बा सन 1905 में नीं ही ! हिन्दी में भी लगोलग कई बरसां सूं एकरूपता पैटै बदळाव होय रै’या है ! भाषा विभाग अर गृह विभाग बदळाव अनै एकरूपता सारू परिपत्र जारी करता रै’वै ! जिण भांत 1905  सूं आज तांई हिन्दी री एकरूपता सारू सरकारी स्तर माथै काम होयो उणीज भांत जे सरकार राजस्थानी सारू फ़गत एक ई साल काम कर देवंती तो ओ एकरूपता आळो आंटो अनै टंटो कद रो ई मिट जावंतो ! पण सरकार राजस्थानी रो कदै ई भलो नीं सोच्यो ! चावै सरकार होवै ,चावै ब्यूरोक्रेट अर चावै शिक्षाविद होवै , सगळां ई राजस्थानी नै तो हरमेस मेटण री ई खेचळ करी ! आप राजस्थानी री एकरूपता री बात करो--राजस्थानी तो बापडी़ हरमेस आपरी ज्यान बचावण में लाग्योडी़ ई रै’ई !

                सरकार इत्तो कै’र किन्नो काट्टै कै - " राजस्थानी संविधान की आठवीं अनुसूची में नहीं है इस लिए हम कुछ नहीं कर सकते !’   अब आप हिन्दी रै बिगसाव-पसराव अनै एकरूपता री कहाणी जाणों-14 सितम्बर 1949 नै भारत री संविधान सभा हिन्दी नै राजभाषा बणावण री घोषणा करी करी अर संविधान री धारा 351 में ओ स्पष्ट करियो कै हिन्दी आपरी शब्दावली प्रमुखत: संस्कृत सूं लेसी पण गौणत: दूजी भारतीय भाषावां सूं भी लेयसी । पछै 1955 में रघुवीर जी रो पै’लो हिन्दी शब्दकोश आयो । हिन्दी निदेशालय 1960 में, वैज्ञानिक एवम्पारिभाषिक शब्दावली आयोग 1960 अर  61 में ,राजभाषाई विधाई आयोग 1961 में , राजभाषा अधिनियम 1963 में , राजभाषा नियम 1976 में बण्या । नागरी प्रचारिणी सभा भी 1947 , 1953 , 1957  अर 1962 में हिन्दी री एकरूपता अर मानकीकरण री ज़बरी खेचळ करी । राजस्थान विधानसभा 1956 में राजभाषा अधिनियम बणायो । बस अठै सूं ई राजस्थान में हिन्दी थोंपीजगी ! राजस्थान में 1965 में भाषा विभाग बणायो अर उण रै जिम्मे राजस्थान में हिन्दी रै बिगसाव-पसराव रो काम राख्यो ! राजस्थान रो बजट पै’ली बार 1977  सूं हिन्दी में बणावणो सरू करीज्यो ।

                 राजस्थान रै भाषा विभाग राजस्थान में हिन्दी रै बिगसाव-पसराव रो काम जोरदार ढंग सूं करियो ।  हिन्दी रो जम’र प्रचार करियो । हिन्दी रै पख में पोस्टर छपवाया-बंटवाया-चिपवाया । स्कूलां में हिन्दी भाषण-कविता री प्रतियोगितावां करवाई । सरकारी आदेशां-परिपत्रां रा हिन्दी अनुवाद करवाय । दफ़्तरा-स्कूलां में हिन्दी रा टाईपराइटर बंटवाया । हिन्दी में दस्कत करण-करावण री मुहिम चलाई ।  राज रा विज्ञापन , प्रमाण-पत्र ,नियुक्ति आदेश , पदौन्ति आदेश गजट , वित्तीय स्वीकृत्यां , बैठकां रा कार्यवृत , आवेदन , अर चिट्ठी -पतरी हिन्दी में लाज्मी करीज्या । पै’ली सूं लेय’र अठवीं तांईं री भणाई भी भाषा विभाग ई हिन्दी में सरू करवाई । इत्ती खेचळ रै बाद कठै ई लारला 64 सालां में जाय’र राजस्थानी नै मार’र उण री लास माथै राजस्थान में हिन्दी खडी़ होई । इत्ती खेचळ रै बाद जाय’र हिन्दी रै मानकीकरण अनै एकरूपता रा काम कीं होया पण हाल भोत कीं बाकी है । इण मैणत रो दसवों हिस्सो ई जे राजस्थानी सारू करीज जावै तो पछै देखो थे राजस्थानी भाषा रा ठाट ! राजस्थानी भाषा में मानकीकरण अनै एकरूपता रा मसला तो तुरता-फ़ुरती में जडा़मूळ सूं ई निवड़ जावै ।

[]- 
 [] ओम पुरोहित 'कागद'
    24 -दुर्गा कोलोनी
   हनुमानगढ़ संगम - 335512 [ राजस्थान ]
  खूंजे रो खुणखुणियों - 09414380571

पाठ-8, राजस्थानी भाषा अर विद्वानां रा विचार

पाठ-8, राजस्थानी भाषा अर विद्वानां रा विचार
                                   [ राजस्थानी भाषा : विद्वानां रा विचार ]
                                     
[] ओम पुरोहित 'कागद'

+"इण लोक्तंत्र में जठै ऐक भारत रै भीतर ओ सई है कै
अलेखूं भाषावां है अर हर भाषा री आपरी संस्कृति है ।
... इणी राजस्थान में म्है विश्वविद्यालय  में राजस्थानी नै
जागा दिरावण खातर कौसिस करी ही । म्हनै खुशी है
कै जोधपुर विश्वविद्यालय राजस्थानी नै जागा दीवी ।
विणरै पछै बाकी विश्वविद्यालयां जागा दीवी । इण
सारू लोग कैंवता हा कै राजस्थानी रै बढण सूं हिन्दी
रो अहित होवैला । म्हैं कै’यो जका राजस्थान्यां हिन्दी
नै उत्पन्न करी,आदिकाल उठै ऊं ई सरू होवै ।
बा हिन्दी रा विरोधी कीकर होय सकै ? इण सारू
जितरी बोलियां है,जित्यरी भाषावां है,सतदल कमल रै समान है ।"
                                       
* डा.नामवर सिंह,प्रख्यात आलोचक,जे.एन.वी.-दिल्ली
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"आपां नै आ बात साफ़-साफ़ समझ लेवणी चाईजैकै आपां
बंगला,मराठी,गुजराती,तेलगू,कन्नड़,मलयालम, अर राजस्थानी
इत्यादि सगळी प्रांतीय भाषावां री तरक्की चावां । हर प्रांत
 में उठै री भाषा नै प्रथम ठौड़ है । हिन्दी कै हिन्दुस्तानी
राष्ट्रभाषा ज़रूर है अर होवणी भी चाईजै पण उणरो नम्बर
प्रांतीय भाषावां रै बाद में है ।"

* पंडित जवाहर लाल नेहरू,प्रथम प्रधानमंत्री,भारत
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" जे राजस्थानी जिसी दो च्यार भाषावां प्रतिष्टित होय
जावै तो इण में कोई आशंका कै डर री बात कोनी है ।
राजस्थानी जनता आपरी अचेत सी आत्मा नै फ़ेरूं
सरजीवण करणो चावै । इण सूं पूरै भारत नै लाभ पूगसी
अर राष्ट्रीय एकता नै कोई नुकसाण नीं पूगसी !"

* डा, सुनीति कुमार चाटुर्ज्या, लिंग्विष्टिक सर्वे
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" राजस्थानी एक स्वतंत्र भाषा रै रूप में विकसित होयसी
अर बखत आयां राष्ट्र रै संविधान में सवतंत्र रूप सूं थोड़
पायसी ।जे राजस्थान पूरै नै जागृत करणौ है तो
राजस्थानी भाषा रै माध्यम सूं ई लोगां में जागृति
पैदा करणी पड़सी ।"

* काका कालेकर
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 " राजस्थानी नै मानता मिलै,इण रो विकास होवै,इण री
जरूरत सदैव ई रैई है ।पण अफ़सोस री बात है कै इण
क्षेत्र में कोई ठोस काम आजे तक कोनीं होयो ।म्हैं इण
बात सूं सहमत हूं कै प्रांतीय भाषावां रै विकास सूं राष्ट्रीय
 भाषा हिन्दी रो कोई नुकसान नीं हुवै ,बलकै उण रो मान
ई दधै ।राजस्थानी भाषा नै संरक्षण देयां हिन्दी रो सबद
भंडार बधै ई है ।"
 
* पं.नवलकिशोर शर्मा,पूर्व केन्द्रीय मंत्री अर महामहिम राज्यपाल
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"राजस्थानी भाषा नै आठवीं अनुसूची में राखणो ई चाईजै ।
आ म्हारी मानता है ।पण साथै ई म्हैं मानू कै संविधान रै
अनुछेद 345 में जिकी सत्ता राजस्थान री विधानसभा नै
 हासिल है,उणरो ई ईमानदारी सूं इस्तेमाल करणो चाईजै ।"
 
* डा. लक्ष्मीमल सिंघवी,जगचावा विधिवेता
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" राजस्थान री अदालतां में राजस्थानी भाषा रो प्रवेश कोनीं ।
इण सूं न्याव करण री प्रक्रिया में घणी अबखाईयां आवै ।
अदालत में फ़रीक जिण भाषा में बोलै,उण भाषा में इज
लिखीजणो चाईजै । नीं तो बयानां री प्रमाणिकता नीं रैवै ।"
 
* श्री गुमानमल लोढा़,तत्कालीन न्यायाधीष,राजस्थान उच्च न्यायालय
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"राजस्थानी भाषा घणी स्मृद्ध अर जूनी जनवाणी है ।
इण भाषा रा लेखक आपणै देश अर समाज नै नूंई
दिशा देय सकै । म्हानै राजस्थानी भाषा , साहित्य
अर संस्कृति माथै गरब है ।"


* प्रो. वासुदेव देवनानी,पूअव शिक्षा मंत्री,राजस्थान
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"राजस्थानी भाषा नै मानता अर उण नै प्रादेशिक भाषा
रै पद माथै बैठावणो, ऐ दोनूं काम बाकी है,जिका आपां
 सगळां नै मिल’र करणां है ।"


* ह्री मोहन लाल सुखाडि़या,पूर्व मुख्यमंत्री,राजस्थान
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" हिन्दी म्हारी राष्ट्र भाषा है,म्हे उण रो प्रचार करांला !
संस्कृत आपणी प्राचीनतम भाषा है, म्हे उण साम्ही माथो
झुकावांला अंग्रेजी आपां री अंतर्राष्ट्रीय भाषा अर कीं
अरथां में अंतरप्रांतीय भाषा है ,म्हे उण रो ई उपयोग
करांला,पण जठां तांईं राजस्थान रो सम्बन्ध है ,

राजस्थानी भाषा ईम्हांणी मातृभाषा है ,उणरो  उपयोग
अर प्रचार करणो खुद रो उतरो ई अधिकार समझां
जितरो दूजा प्रांत आपरी भाषावां नै अपणावण अर
फ़ैलावण में राखै ।"

* श्री जयनारायण व्यास,पूर्व मुख्यमंत्री,राजस्थान
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" आज राजस्थान रा लोग राजस्थानी भाषा री संवैधानिक
मानता री बात उठावै । ज़रूर राजस्थानी भाषा नै संवैधानिक
मानता मिलणी चाईजै । इण नै संविधान री आठवीं अनुसूची
में सामल करीजणी चाईजै । म्हनै तो इण में बिलकुल ई
ऐतराज आळी कोई बात कोनी लागै ।"

* श्री वसंत साठे,पूरव केन्द्रीय सूचना एवम प्रसारण मंत्री,भारत-मई १९८१
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" राजस्थानी भाषा एक भोत सिमरिद्ध भाषा है ,जिकी कै
देश प्रेम सिखावै । इण नै मानता मिलै तो हिन्दी नै इण सूं
कोई नुकसाण कोनी होवै , बनिस्पत राजस्थानी भाषा रै विकास सूं
हिन्दी ई नीं,पूरै विश्व साहित्य नै बधापो मिलसी । म्हैं मन सूं चावूं कै
राजस्थानी भाषा नै संवैधानिक मानता मिलणी ई चाईजै । संसद्व में
जद राजस्थानी भाषा नै संवैधानिक मानता रो विधेयक आयो तो
म्हैं अर म्हारी पार्टी रा लोग इण रो पूरो समर्थन करस्यां ।"

* श्री अटलबिहारी वाजपेयी सांसद,फ़रवरी-१९८४
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"राजस्थानी भाषा नै संवैधानिक मानता मिलणी ई चाईजै । आ भाषा
संवैधानिक री हकदार है । आ तो राजस्थान्यां री गळती रैई कै
वै इतरा बरस आळस मे सूत्या रैया ।राजस्थानी भाषा घणी जूनी अर
सिमरध भाषा है। संसार में प्रचलित अर थापित कई भाषावां रो
जिण बखत नांव ई नीं हो बीं बगत राजस्थानी भाषा फ़ळी फ़ूली
भाषा ही ।अबै कैई राजनैतिक कारणां सूं  इणरा महत्व नै
कम नीं आंकनो चाईजै ।"

* डा. बलराम जाखड़,तत्कालीन लोकसभाध्यक्ष,मई-१९८३
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"जठै तक राजस्थानी भाषा री मानता में घांदा घालण या
रोडा़ अटकावण री बात है,तो म्हारै विचार में ओ काम वां
लोगां रो है जिका रै स्वार्थां नै ठेस पूगै का आंच आवै ।
 सचिवालय में काम कर रैया अधिकारी सराजस्थानी भाषा
री उपेक्षा करै तो आ बात ठीक कोनीं । उणां नै आपरै
 इण रवैयै में बदळाव ल्यावणो चाईजै,जिण सूं कै हिन्दी
 रो ई भलो होयसी ।"

* श्री कमलेश्वर,साहित्यकार-पत्रकार,जुलाई-१९८७
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"म्हैं तो राजस्थानी भाषा रै पगस में हूं । ऐकबार डा. करणी सिंह जी
लोकसभा में मुद्दो उठायो ई हो , पण बात किणीं कारण सूं बैठी कोनी।
खैर,भविस में जद ई राजस्थानी भाषा रो मुद्दो उठैला तो राजस्थानी भाषा
सारू राजस्थान्यां रो पगस लेवांला ।"

* श्री लाल कृष्ण अडवाणी,अध्यक्ष भाजपा,अक्टूबर-१९८७
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" भाषा रै आधार पर प्रांत बण्या ,पण राजस्थान्यां  सागै
न्याय नीं होयो ।राजस्थानी भाषा रै आधार पर प्रांत रो
नांव राजस्थान थरप दियो  पण  अठै- रै लोगां रै मुंडा माथै
पाटी बांध दी । आज राजस्थान आपरी भाषा री संवैधानिक
मानता रै कारण अबोलो है । भाषा री मानता रै अभाव में ई
सरकार अर जनता में संवादहीणता है । प्रांत बेरोजगारी
री मार झेल रैयो है। राजस्थानी भाषा री राज मानता
 अर प्रारम्भिक शिक्षा में होयां बिना राजस्थान रै विकस री
कल्पना नीं होय सकै ।"

* डा.रामप्रताप,पूर्व खाद्यमंत्री,राजस्थान,३ मार्च २००३
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" आज राजस्थान रा लोग राजस्थानी भाषा री राज मानता
री बात उठावै ।ज़रूर राजस्थानी भाषा नै संवैधानिक मानता
मिलणी चाईजै।इण नै संविधान री आठवीं अनुसूची में सामल
करीजणी चाईजै ।म्हनै तो इण में बिलकुल ऐतराज वाळी
बात कोनीं लागै ।"

* वसंत साठे ,पूर्व केन्द्रीय सूचना एवम प्रसारण मंत्री,भारत-मई १९८१
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" सै सूं पैली तो राजस्थान सरकार कानीं सूं राजस्थानी भाषा
नै मानता मिलणी चाईजै ।पछै विद्यालयां में इणरै पढण री
व्यवस्था होवणी चाईजै ।"

* श्री प्रभाकर माचवै,साहित्यकार,जून १९८३
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" गोबिल्स रो कैणो है कै ऐक झूठ ने सौ दफ़ा दोहराओ तो बो झूठ नीं रै कर साच बणजासी ! आम मिनख उण नै साच मानणो चालू कर देगो ।राजस्थानी रै सागै यो ही होयो है । लारलै ५० बरसा सैं एक झूठ फ़ैलायो गयो-राजस्थानी भाषा, भाषा नहीं- बोली है ।अर आम मिनख ईं पर बिसवास कर बैठ्यो ।प्रचार इत्तो प्रभावशाली रैयो कै कुछ राजस्थानी भी ओ झूठ बोलण लागग्या ।भाषा अर साहित्य रो ही नहीं , अपणै समाज रो भी  ईं सैं घणो नुकसान होयो । जरूरी है कै राजस्थानी समाज हकीकत नै समझै । आपणै राजस्थान में एक कहावत चालै कै -  बिना बेटां री मा रुळती फ़िरै । गांव ईं सारू कोई नै दोस नीं देवै , कैवै कै ईं रो तकदीर ही खराब है । पण जीं रा बेटा सावळ हुवै,उणां री मा  जे रुळती फ़िरै तो ओळमो बेतां रै सिर जावै-गांव कैवै कै इण खातर जण्या हा के ? आपणी स्थिति जीवण बणावण हाळी मायड़ भाषा रै संदर्भ में मोटा-मोटी ईं तरै ही है । प्रयास है कै आपां आपणी मायड़ भाषा राजस्थानी रै बारै में फ़ैलायोडै भरम री असलीयत नै जाणां। जाणां कै आपणी भाषा घणी समृद्ध है। जाणां कै इण नै संवैधानिक मान्यता क्यूं मिलणी चाये ? जाणां कै आपां नै के काम करणां है ? सामूहिक प्रयास करां-प्रजातंत्र है ,इण में सगळा संगठित हुय’र प्रेसरग्रुप बणावां , जद ही बात ढर्रै आवैगी । "
"दुनियां री करीब-करीब सारी भाषा में एकरूपता जद ई आई ,जद बा राज री,शिक्षा री अर धर्म-ग्रंथां री भाषा बणीं ।गुजराती भाषा खातर महात्मा गांधी जी यो फ़रमान निकाळ्यो थो कै-"हवै पछी कोई ने स्वेच्छाए जोड़नी करवा नो अधिकार नथी । "
[इसके पश्चात किसी को स्वेच्छा से वर्तनी बनाने का अधिकार नहीं है ।]

{सूत्र-सार्थ गुजराती जोड़नी कोष-प्रकाशित सन १९२९ रो पैलो पान्नो }

* रतन शाह , उद्यमी-कोलकाता
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"  इस अनमोल साहित्य की रक्षा करना  प्रत्येक  राजस्थानी ही नहीं ,प्रत्येक भारतीय का पुनीत कर्तव्य है।   मैं गीतांजली लिख सकता हूं , डिंगल के दूहे जैसी काव्य रचना नहीं कर सकता । इसका कारण है-आज वह हल्दीघाटी का वातावरण कहां और बिना वातावरण के कवि को प्रेरणा कहां से मिल सकती है । इस लिए तुम्हारा-हमारा,सबका यह कर्तव्य है कि तन से , मन से ,धन से , जैसे भी हो, इस साहित्य को लुप्त होने से बचाया जाए । इसका प्रचार-प्रसार किया जाए ।"सन १९३१"

*  रविन्द्रनाथ टैगोर
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सन १९३१ में राजस्थान में ९१ % लोग बा भाषा बोलै ,जकी संविधान सूं मान्य १४ भाषावां सूं अलग है । १०००० लोगां लारै खाली ८०९ लोग आं १४ भाषावां में बोलै , बाकी ९१९१ लोग कुणसी भाषा बोलै ? निश्च्य ही  राजस्थानी भाषा बोलै ।

* १९६१ में आज़ाद भारत री सरकार रै अधिकारि सूचना पत्र "गजएटियर ओफ़ इंडिया" रा आंकडा़
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" राजस्थानी वीर प्रदेश री वीर भाषा है । राजस्थानी रो साहित्य अमर साहित्य है । जीवण सूं लबालब भरयोडो़ । कुण जाणै इतिहास में उण कित्ता चमत्कार करिया है । सारो संसार उण पर मुग्ध है। संसार रा बडा-बडा विद्वान, अडा-बडा महापुरूष अर बडा-बडा नेता उण री प्रसंसा करता धापै कोनी। मालवीय जी थोडा़ सा नमूना सुण्या हा, सुणतां ई बोल्या -ओ साहित्य आपणां विश्वविद्यालयां में क्यों नी पढा़ईजै?विश्व कवि रविन्द्रनाथ जी इण साहित्य नै आप रै शांतिनिकेतन सूं छपावण री मंसा प्रकत करी ।
उतरादै भारत री भाषावां में राजस्थानी भाषा सै सूं पुराणी भाषा है ।बा बांगला री बडी बैन है।
.....बा राजभाषा ही, लोक-भाषा ही, शिक्षा री भाषा ही, साहित्य री भाषा ही । विक्रम रै उगणीसवैं सैईकै [ विक्रमी संवत-की उन्नीसव ईं सदी]  ताईं राजस्थानी साहित्य रो घणो विकास होयो। बीसवै सईकै[ बीसवीं सदी] में राष्ट्रभाषा हिन्दी राजस्थान में आई । पैली पाठशाला में राजस्थानी पढाई जाती , अबै नवी स्कूलां में राजस्थानी री जाग्यां हिन्दी पढाईजण लागी ।राजस्थानी साहित्य रो विकास बंद तो कोनी पण मंद होग्यो ।शिक्षा संस्थावां अर भाषा री उन्नति रो घणो सम्बन्ध है। लोग जकी भाषा में शिक्षापा वै,बै नै ई बोलै , बै में ई सोचै अर बै में ई साहित्य रचना करै ।
.......शिक्षा री भाषा न्यारी अर जनता री भाषा न्यारी होगी । पढ्योडा़ अर अर जनता में आंतरो पडण लागग्यो । ओ आंतरो दिनूंदिन बधतो ही गयो ।
 
* ठा.रामसिंह जी तंवर, दिनाजपुर-१९९४,अखिल भारतीय राजस्थानी साहित्य सम्मेलन में
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" मेरा निवेदन है कि राजस्थानी भाषा की बडी़ समर्थ परम्परा रही है । जिस भाषा का ऐसा इतिहास रहा हो , जिस भाषा में शौर्य और शृंगार का ऐसा सम्मिश्रण रहा हो, जिस भाषा में अस्मिता की अभिव्यक्ति के लिए ऐसा अवसर मिला हो,उस भाषा को स्वीकार करने के लिए अगर हम यह कहें कि-हम सोचेंगे कि इन भाषाओं को किस प्रकार आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए और किस आधार पर किया जाए तो शायद यह ऐतिहासिक विडम्बना होगी ।"

*डा. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी,राज्य सभा में -१७ मई २००२
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"राजस्थान राजस्थानी भाषी प्रांत है।हिन्दी इण प्रांत री भाषा कोनी ।....मातृभाषा राजस्थानी है।राजस्थान सदा सूं ई हिन्दी नै राष्ट्रभाषा रै रूप में मानतो अर आदर देतो आयो है पण इण कारण उण नै हिन्दीभाषी मान लेणो सरासर अन्याय है ॥"

* सुमनेश जोशी,साहित्यकार,राजस्थान भाषा प्रचार सभा ,जयपुर [१८-२० मार्च १९६६]
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"राजस्थानी एक समर्थ भाषा है अर आ बात जरूरी है कै उण नै राजस्थान री मातृभाषा रै रूप में मानता दी जावै । "

* हरिभाऊ जी उपाध्याय, साहित्यकार,राजस्थान भाषा प्रचार सभा ,जयपुर [१८-२० मार्च १९६६}
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आज़ादी को ६३ साल हुए ! हम आज़ भी बेज़ुबान हैं ! ऐसा भी नहीं कि हमारी कोई ज़ुबान नहीं ! सब कुछ है !हमारे पास वह ज़ुबान है जिसका लोहा दुनिया मानती है !बस अपनी ज़ुबान में बोलने का अधिकार नहीं !हमारे बच्चॊं को अपनी ज़ुबान में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने का भी अधिकार  नहीं ! हमारी ज़ुबान है राजस्थानी !राजस्थानी वह भाषा है जो देश के सब से बडे़ प्रांत की ही नहीं बल्कि सब से बडे़ भूभाग की भी भाषा है ! आईए जानें हमारी राजस्थानी भाषा के बारे में दुनिया के विद्वान/हमारे नेता/हमारे साहित्यकार  क्या कहते हैं :-
 [ कृपया रोज़ाना देखें- विचारों की इस कडी़ को बढा़ता रहूंगा रहूंगा ! आपके पास हों तो आप भी भेजें !]
 
‎"इस चिर युवती या चिरनवीना नक्षत्र रचित रात्रि सी सुन्दरी और गम्भीर भाषा [राजस्थानी] को फ़िर अपने घर की रानी बनाने की चेष्टा हर मरुदेशवासी का फ़र्ज़ है ।भाईयो,अपनी मातृ भाषा राजस्थानी का स्थान फ़िर ऊंचा करो,उससे अपनी उन्नति करो और हृदय का प्रकाश करो !"

[] डा.सुनीति कुमार चाटुर्ज्या,भषा विज्ञानी
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‎"There is an enoumus man of literture in various forms in rajasthani,of considerable historical importance,about which harly anything is known."

*Sir G.A.Griyarson
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‎"Our great provincial languages are not dialects or vernaculars as the ignorant sometimes calls them.They are a rich inheretance,each spoken by many million persons, each tied up inextrically with the life and culture and ideas of the mass...es as well as the upper larg."

*Pt. J.L.Nehru
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"The vast literature flourished all over Rajputana and Gujrat where ever Rajput shed his blood."

*Dr.L.P.Tessitorry
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"शिक्षा मातृभाषा के द्वारा ही होनी चाहिए,यदि इस सिद्धान्त को मान लाया जाए तो राजस्थान से निरक्षरता हटने मेँ देर कितनी देर लगे । राजस्थान की जनता बहुत दिनोँ तक भेड़ोँ की तरह नहीँ हांकी जा सकेगी । इस लिए सब से पहले आवश्यकता है कि, राजस्थानी भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया जावे ।"

* राहुल सांकृत्यायन
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"दीपै वांरा देश ज्यांरो साहित जगमगै ।"

*उदयराज उज्ज्वल
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‎"राजस्थानी को मान्यता और अपने घर मेँ [राजस्थान] अधिकृत रूप से उसकी प्रादेशिक भाषा के पद पर प्रतिष्ठा ,ये दो बड़े काम बाकी हैँ जिन्हेँ हम सब को मिल कर करना है । "

*मोहन लाल सुखाड़िया, पूर्व मुख्यमंत्री,राजस्थान
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‎"राजस्थानी भाषा का साहित्य खूब फलेफूले और राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता दी जानी चाहिए।"

* सेठ गोविन्द दास
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"राजस्थानी भाषा है या बोली ओ विवाद भलां ई चालू है पण इण मेँ कोई संदेह कोनीँ कै प्राकृत अर अपभ्रंश रै नजदीक जित्ती राजस्थानी है उत्ती शायद हिन्दी भी कोनीँ ।पंजाबी ,मराठी आद सब भाषावां रो मूळ स्त्रोत प्राकृत अर अपभ्रंश मेँ मिलै है , वां नै ...आज संवैधानिक भाषा रो दर्जो मिल्योड़ो है । राजस्थानी रै बारै मेँ विवाद रो कारण समझ सूं बारै है । खैर ! कुछ भी हो आपां नै तो विवाद मांय सूं संवाद खोजणो है ।

*आचार्य महाप्रज्ञ
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"विश्व की भाषाओँ मेँ राजस्थानी भाषा का पच्चीसवां स्थान है ।"

*डा.वेल्फील्ड, अमेरिका
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"सरकार द्वारा शिक्षा का अधिकार कानून बनाया गया है जिसके पैरा 29 (2)(एफ) मेँ यह प्रावधान है कि छात्र छात्राओँ को प्राइमरी शिक्षा उनकी मातृभाषा मेँ दी जाए । राजस्थान मेँ मातृभाषा राजस्थानी है जिसे संविधान की आठवीँ अनुसूची मेँ सम्मिलित नहीँ क...र रखा है तो भारत सरकार द्वारा जो शिक्षा का अधिकार कानून बनाया गया है उसकी पालना कैसे होगी ?18 दिसम्बर 2006 को संसद मेँ श्री प्रकाश जायसवाल द्वारा आश्वासन दिया गया था कि भोजपुरी व राजस्थानी को आठवीँ अनुसूची मेँ लेने का महापात्र कमेटी की अभिशंषा अनुसार 14 वीँ लोकसभा मे ही बिल लेकर आएंगे और मान्यता दिलवाएंगे जबकि अब 15 वीँ लोक सभा का भी दूसरा साल जा रहा है ।"

*अर्जुन मेघवाळ,सांसद
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 ‎"राजस्थान ने अपने रक्त से जो साहित्य निर्माण किया है उसकी जोड़ का साहित्य और कहीँ नहीँ पाया जाता और उसका कारण है राजस्थानी कवियोँ ने कठिन सत्य के बीच मेँ रह कर युद्ध के नगाड़ोँ के मध्य कविताएं बनाई थीँ । प्रकृति का तांडव रूप उनके सामने था ।...... राजस्थानी भाषा के साहित्य मेँ जो एक भाव है,उद्वेग है, वह केवल राजस्थान के लिए नहीँ अपितु सारे भारतवर्ष के लिए गौरव की वस्तु है ।"

*रविन्द्रनाथ ठाकुर
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"राजस्थानी वीरों की भाषा है,राजस्थानी का साहित्य वीर सहित्य है । संसार के साहित्य में उसका निराला स्थान है ।वर्तमान काल में भारतीय नवयुवकों के लिए तो उसका अध्ययन अनिवार्य होना चाहिए !"

* पं.मदनमोहन मालवीय
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"हिन्दी हमारे राष्ट्र्भाषा है पर जिस ज़ुबा्न को हमने< मां के पेट से जन्म लेते ही सीखा वह भी हमारी भाषा है और मातृभाषा है । मातृभाषा हमें राष्ट्रभाषा के निकट ले जाटी है , उस से दूर नहीं फ़ैंकती । राजस्थानी हमारी मातृअभाषा है , उसका उपयोग और प्रचार करना वैसा ही अधिकार समझते हैं जैसा दूसरे प्रांत अपनी भाषाओं को अपनाने और फ़ैलाने का ।"

* जयनारायण व्यास,पूर्व मुख्यमंत्री,राजस्थान
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"हमें यह बात साफ़-साफ़ समझ लेनी चाहिए कि हम बंगला,मराठी,गुजराती,तमिल, तेलगु,कन्नड़ ,मलयालम और राजस्थानी आदि अन्य प्रांतीय भाषाओं की तरक्की चाहते हैं । हर प्रांत में वहां की भाषा ही प्रथम है । हिन्दी या हिन्दुस्तानी राष्ट्रभाषा अवश्य है और होनी भी चाहिए लेकिन प्रांतीय भाषाओं के पीछे ही आ सकती है ।"

* पं. जवाहर लाल नेहरू,प्रथम प्रधानमंत्री,भारत
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"राजस्थानी एक अलग भाषा के रूप में विकसित होगी और यथासमय राष्ट्र के विधान में स्वतंत्र रूप से स्थान पाएगी ।

राजस्थानी भाषा के द्वारा ही लोगों में जागृति का काम करना होगा । राजथान में प्राथमिक और माध्यमिक  शिक्षा और खास करके गांवों की शिक्षा राजस्थानी के द्वारा करने से लोगों में एकता की भावना और नवजीवन का संकल्प दोनों जोर पकडेगे ।"

* काका कालेकर
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" मेरे मन में भारतवासियों के प्रति बडा़ आदरभाव है । भारतीय भाषाओं से मुझे बडा़ लगाव है । मेरी मातृभाषा इतालवी से भी ज्यादा मुझे राजस्थानी भाषा एवमं हिन्दी भाषा से प्रेम है ।"

* एल.पी. टेस्सीटोरी
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" राजस्थानी भाषा राजस्थान की भाषा है । समूचे राजपुताने [राजस्थान]  में ,मध्यभारत के पश्चिमी भागों ,मध्यप्रदेश,सिंध, व पंजाब के आस-पास के टुकडो़ में यह ओली जाती है जो एक ओर पश्चिमी हिन्दी से तथा दूसरी ओर गुजराती से भिन्न है तथा एक पृथक और स्वतंत्र भाषा के गौरव का अधिकार रखती है । "

* ग्रियर्सन,भाषा विज्ञानी
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" भारतीय भाषावां मे  संस्कृत पछै सब सूं जूनी अर सिमरिध राजस्थानी भाषा कहीजै । फ़ैलाव री दीठ सूं सगळी भाषावां सूं बत्ते क्षेत्रफ़ळ में इण भाषा नै बोलीजै ।

* मूळदान देपावत ,साहित्यकार
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निज भाषा साहित्य बिन , पनपै कदै न प्रान्त ।
सभ्य स्वतंत्र समाज रो , सदा अमर सिधान्त ॥

* कन्हैयालाल सेठिया
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" राजस्थान री भाषात्मक एकता सारू राजस्थानी भाषा नै मानता देवणे जरूरी है ,जिण राज देश नै लडा़कू जोढा दिया , उण री अवमानना अन्याय है । भाषा शास्त्रियां री दीठ में राजस्थानी भाषा एक भाषा है , जनता री भावनावां अर परिस्थितियां न कबूळणी राजनीतिग्यता है । भाषा विधेयक सूं राष्ट्रीयता रो कोई नुकसाण नी हुवै । "

* पूर्वमहाराजा करणी सिंह, सांसद,बीकानेर [१७ फ़रवरी १९६८ नै संसद में भाषा विधेयक राखतां  ]
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" राजस्थानी भाषा जो न केवल भारत में है बल्कि विदेशों में भी इसके साहित्य पर रिसर्च हो रहा है और यह एक ऐसी भाषा है जिसमें एक-एक शब्द के दो सौ पर्यायवाची शब्द हैं । हिन्दी हमारी भाषा है.......हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है उनके प्रति सम्मान है लेकिन राजस्थानी भाषा जो प्रदेश के अनेक हिस्सों में बोली जाती है........इसको संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित किया जाए ।"

* डा. बी.डी. कल्ला भू,पू.मंत्री एवम विधायक,बीकानेर {२५-९-१९९२ नै विधान सभा में }
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"...मुझे खुद को ऐसा महसूस होता है कि यदि कोई मैसेज कनवे करना है,कोई बात कहनी है लोगों के गले उतारनी है तो राजस्थानी भाषा का प्रयोग किया जाए,उससे ज्यादा कोई दूसरा बढि़या साधन नहीं हो सकता ।...न दिलों का बंटवारा होगा,न राजस्थान का बंटवारा होगा ,न देश का बंटवारा होगा, कोई बंटवारा नहीं होने वाला है और इस लिए इस भाषा के बाद बंटवारे की बात नहीं जोडे़ तो ज्यादा अच्छा रएगा ।"

* भैरोंसिंह शेखावत,भू.पू.मुख्यमंत्री,राजस्थान [२५-९-१९९२ नै विधानसभा में ]
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"नि्संदेह १०-१२ करोड़ राजस्थानी बोलने वालों की भाषा को केवल बोल-चाल की भाषा बता कर उसे मान्यता प्रदान नहीं करना एक संवैधानिक भूल है !"

* हरीशंकर सिंघानिया
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" राजस्थानी भाषा नै संविधान री आठवीं पानडी़ {अनुसूची} में जोडा़वण सारू म्है सब प्रयास कर रिया हां । इण सारू राजस्थान सरकार अर भारत सरकार रा मुखियावां नै बार-बार कागद  लिख रह्यो हूं । आसा है, आपणो सबां रो ओ प्रयास अकारथ नहीं जावैला । "

*  महाराजा गजसिंह, पूर्व महाराजा अर सांसद ,जोधपु
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" राजस्थानी भाषा विश्व की १३ समृद्ध भाषाओं में से एक समर्थ भाषा है ।"

* अमेरीकन कांग्रेस ओफ़ लाईब्रेरीज
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" भारत नै आज़ाद हुयां ५७ बरस होगा, पण राजस्थानी भाषा नै जिकी १५ करोड़ {७ करोड़ प्रवासी }लोगां री भाषा है , भारत रै संविधान में मान्यता नहीं देणों - सम्विधान री घोर अवमानना है । प्रजातांत्रिक संविधान में संविधान री जड़ पर कुठारा घात करियो गयो है ।- आ घणीं चिन्ता री बात है । राजस्थान विधान सभा में राजस्थानी भाषा नै सर्वसम्मत संकल्प {प्रस्ताव }्सैं पारित कर’र केन्द्रीय सरकार नै भेज्यो , पण बीं पर तानाशाही राजनेता विचार तक कोनी करियो , आ राजस्थानियां रै लिए अपमानजनक बात है । अब समै आग्यौ है कै सब राजस्थानी एकजुट होय जन-जागरण रै वास्तै अब हियान सरू करै ।’

* कन्हैया लाल सेठिया
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..

राजस्थानी भाषा प्रचार सभा खानी सूं जयपुर में १८ सूं २० मार्च १९६६ तक विद्वाना री ऐक गोठ तेडी़ ! ईन गोठ में राजस्थानी भाषा पैटै कई प्रस्ताव पारित होया !  इण में सूं ऐक प्रस्ताव :-
                                            प्रस्ताव-१
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"राजस्थानी भाषा अर सहित्य रै ईन उपन्षद रै मौकै पर भेळा हुयोडा़ राजस्थान रा साहित्यकारां अर विद्वानां रो यो पक्को मत है कै राजस्थान री स्वभाविक मातृभाषा राजस्थानी है । भारतीय भाषावां रै ऐतिहासिक काळक्रम अर भारतीय भाषा विज्ञान रै सिद्ध निष्कर्षां रै आधार पर राजस्थान प्रदेश मातृभाषा री दृष्टि सूं हिन्दी प्रदेश कोनीं । राजस्थानी भाषा अर साहित्य में जण-जीवण रै व्यवहार री धारावाही परम्परा अपभ्रंश काळ सूं ई अविच्छन्न रूप सूं चालती आई है । इण वास्तै उपनिषद रै मौकै पर भेळा हुयोडा़ राजस्थान रा साहित्यकारां अर विद्वानां रो यो फ़ैसलो है कै राजस्थान री दो ढाई क्रोड़ लोगां री स्वाभाविक मातृभाषा नै प्रदेश अर राष्ट्र रै स्तर पर पक्कायत मानता मिलनी चाईजै !  इण वास्तै यो निर्णय करियो जावै कै राजस्थानी री बोलियां रो उदारता सूं विकास करतां हुयां राजस्थानी भाषा रै रूप रो विकश करियो जावै अर राजस्थानी भाषा री मानता री समस्या नै सारै राजस्थान में चेतना पैदा करता हुयां सुळझाई जावै । "

प्रस्तावक= जनार्दनराय नागर
समर्थक=सुमनेश जोशी

उपस्थित=रेवतदान चारण,हरीन्दर चौधरी , प्रो.मदनगोपाल शर्मा, डा.मनोहर शर्मा, सीताराम लालस, कोमल कोठारी, लाल कवि,श्रीलाल नथमल जोशी, परमेश्वर सौलंकी, सौभाग्यसिंघ शेखावत, प्रो.प्रेमचन्द विजयवर्गीय, श्रीलाल मिश्र, उमराव सिंह मंगळ, देवीलाल पालीवाल, सत्यनारायण प्रभाकर"अमन", हणूंतसिंह देवडा़, प्रल्हादराय व्यास, प्रो.शंभुसिंह मनोहर, डा.हीरालाल महेश्वरी, बुद्धिप्रकाश पारीक, रामवल्लभ सोमाणी, नरोतमदास स्वामी, मंगळ सक्सैना, सुमनेश जोशी,  कुं.चन्द्रसिंह बिरकाळी, मूळजी व्यास, मूळचन्द जौहरी, महाराणी लक्ष्मी कुमारी चूंडावत, मुरलीधर व्यास, शंकर पारीक, सवाई सिंह धमोरा, रेवाशंकर, डा. नरेश भानावत, मूळचन्द सेठिया, रामनिवास शाह, हिम्मतलाल हिमकर नेगी, सीता राम पारीक, मनोहर प्रभाकर, कल्याणसिंह राजावत, रामकृष्ण बोहरा, रावत सारस्वत, जनार्दन राय नागर, प्रो.विद्याधर शास्त्री, गिरीश जी पांडेय, वेद व्यास, नेमीचन्द श्रीमाल, डा.सरनामसिंह शर्मा, औंकार सिंह [I.A.S.], कन्हैयालाल अर कामतागुप्त कमलेश
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" राजस्थानी नै संविधान में मानता कोनी मिली ! इण काम में श्री कन्हैयालाल माणकलाल मुंशी अगवा हा बै राजस्थान अर गुजरात नै भेळ’र राजस्थान पर गुजराती थौपणै रा सुपना देखता हा, जिकै सूं राजस्थानी री पुकार सुणी कोनी गई । राजस्थानी भाषा री आज री हालत री तुलना सो बरस पैली री हिन्दी सूं करां तो राजस्थानी भाषा हिन्दी सूं कित्ती ई जादा समर्थ अर प्राणवान ही । हिन्दी म्हारी राष्ट्रभाषा है पण इण रो ओ मतलब कोनी कै राजस्थानी म्हारी मातृभाषा कोनीं । हिन्दी नै जे दूजी प्रांतीय भाषावां सूं कोई खतरो कोनी तो फ़ेर राजस्थानी भाषा सूं खतरो किंयां होय सकै ! "

*श्री नरोत्तमदास स्वामी,भाषाविद, [राजस्थानी भाषा प्रचार सभा, जयपुर री गोठ में ,१८ सूं २० मार्च १९६६]
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"म्हे लोग राजस्थानी भाषा नै राजस्थान री मातृभाषा मानां अर हिन्दी नै राष्ट्रभाषा । जका लोग आ बात कैवै कै राजस्थानी भाषा री बढो़तरी सूं हिन्दी री हाण हुवै, बै बेईमान है ।"

* जनार्दनराय नागर , भाषाविद  [राजस्थानी भाषा प्रचार सभा, जयपुर री गोठ में ,१८ सूं २० मार्च १९६६]
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" The Rajasthaani language , our source of communication and rich in values, has not been given its proper recognition as one of the regional  lenguage in the Constitution.......We, the NRIs of rajasthani origin , resole and strongly feel that as this language is the main uniting force in a foregn land. immediate steps should be taken for the recognition of this language in the rajasthan assembly and to insert it in the Constitution of India. "

* K.K. Mehata, CPA, RANA[Rajasthani association of  north america-5-7-2003]
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"नेतावां रै प्रताप सूं  राजस्थान री मातभाषा हिन्दी घोषित होयोडी़ है । राजस्थान बरसां सूं हिन्दी री सेवा करतो आ रेयो है अर आगै भी करतो रैसी , पण राजस्थान री मातभाषा री वेळा हिन्दी रो नांव लेवणों करोडू़ राजस्थान्यां री भावनावां  सागै खिलवाड़ करणो है । जद चुणावां रो मौको आवै तो नेताजी खुद आपरा भाषण राजस्थानी भाषा में देवै , बै जे सांचै मन सूं हिन्दी नै अठै री मातभाषा मानता होवै तो बांरा  भासण भी हिन्दी में होंवता  , राजस्थानी में नीं । राजस्थानी मातभाषा है, बा मा रै दूध सागै ई टाबर में प्रवेश करै, पण  टाबर  जद बडो होवै तो उण नै गाय रो दूध भी सेवन करणो पडै़। ऐक तो होवै आपणी जलम री देवाळ मा  अर दूजी होवै गाय-माता । आ ई स्थिति भाषावां री है। मा रै दूध रो दरजो तो मात भाषा रो ई रैसी । हां,गाय रो दूध भी आगै चाल’र अपरिहार्य है, उण हालत में आखो राजस्थान-सगळो राजस्थान ऐक सुर में ,समवेत सुरां में हिन्दी  अर फ़कत हिन्दी नै  ई देश री सम्पर्क भाषा रै रूप में स्वीकारै पण मातभाषा रो पद तो खाली राजस्थानी भाषा खातर सुरक्षित है, उण माथै दूजो पग टेक सकै कोनीं ।"


* श्रीलाल नथमल जोशी,साहित्यकार,बीकानेर  [आस्था रा आखर-कोलकाता]


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 [] ओम पुरोहित 'कागद'
    24 -दुर्गा कोलोनी
   हनुमानगढ़ संगम - 335512 [ राजस्थान ]
  खूंजे रो खुणखुणियों - 09414380571

पाठ-7 ,राजस्थानी भाषा अर साहित्य परापर

पाठ-7 ,राजस्थानी भाषा अर साहित्य परापर
                    [] ओम पुरोहित 'कागद'"

[ १] राजस्थानी भाषा अर साहित्य भाषा-
  
        -सन ११०० रै नैडै़-तेडै राजस्थानी रो उदभव


... [क] सन १४५० तांई गुजराती अर राजस्थानी ऐक इज ही ।
 
        -ईं काळ तांई दोनां रो साहित्य ऐक है


[ख] हिन्दी रै " आदि काल" री काव्य भाषा है

      -राजस्थानी अर राजस्थानी सूं प्रभावित हिन्दी
      -राजस्थानी साहित्य हिन्दी रै आदिकाल रो साहित्य
      -राजस्थानी रो प्रभाव अर व्यापकता-
        कबीर,जायसी आदि री भाषा
        दखणी हिन्दी, पहाडी़ हिन्दी अर नेपाली भाषावां

[२]  राजस्थानी साहित्य री निजि अथवा जातीय विशेषतावां-
      
      [१] चारण साहित्य-
        
         -ऐतिहासिक अर वीर रसात्मक
         -सेस भारतीय आर्य भाषावां में न्यारो ई महत्व
          - गीत,दूहा,छप्पय,नीसाणी,प्रबन्ध काव्य
          - मध्यकाल रै राजनैतिक, सांस्कृतिक इतिहास रो अटूट भंडार         
          -राष्ट्र-संकट अर ओ साहित्य
     
[३] पौराणिक अर  धार्मिक-
          
         भगवान रा दो रूप घणां उजागर हुया-
          -वीर अर भक्त उद्धार्क
         -परस्थिति’र स्वभाविकता-रामरासौ
   [३] जैन साहित्य-
         -कथा काव्य
         -लोकगीतां री ढाल
         - परम्परा
          - भाषा रै इतिहास री सामग्री
           -सैंकडूं अजैन ग्रंथां रो रख-रखाव अर लेखण
   [४] सन्त काव्य
           -देस री भावनात्मक ऐकता अर आत्मौथान रो अनोखो प्रयास
           -निर्गुण,सगुण,अर सगुणोन्मुख निर्गुण
           -नाथ पंथ-राजस्थान अर हरियाणो इण रो गढ
           -गुणवत्ता अर परिमाण में बेजोड़
            -बोली सुधार
           [क] बै जका एक जीवण पद्धति रै रूप में सम्प्रदाय री थरपणा करी अर बांरा मानण आळा-
               [१]  अग्रदास{रैवास,सीकर}- रामभक्ति में मधुर उपासना
               [२]  जाम्भो जी                 -विष्णोई सम्प्रदाय
              [३]  जसनाथ जी                 -जसनाथी सम्प्रदाय
              [४] परशुरामदेव जी           -निम्बार्क सम्प्रदाय
              [५]  हरिदास जे                    -निरंजनी सम्प्रदाय

              [६]  दादूदयाल जी                 -दादू पंथ
              [७]  लालदास जी                 -लाल पंथ अथवा लालदासी सम्प्रदाय
              [८]  चरण दास जी                 -शुक अथवा चरणदासी सम्प्रदाय
                [९] रामचरण जी                  -रामस्नेही सम्प्रदाय[शाहपुरा]
               [१०] दरियावजी                        -रामस्नेही सम्प्रदाय [रैण]]
               [११] हरिरामदास जी              -   रामस्नेही सम्प्रदाय [सींथळ]             
               [१२]  रामदास्जी                        -रामस्नेही सम्प्रदाय [खेडा़पा]
                [१३] जी जी देवी                     -आई पंथ [बिलाडा़]
                 [१४] लालगिरि                           -अलखिया सम्प्रदाय
             [ख] बै संत जका सम्प्रदाय परम्परा सूं अळगा हा- पीपा जी,काजी महमूद,मीरां बाई दीनदरवेश आद
[५] आख्यान काव्य-
         विसेसतावां-
          मध्यकाल में सगळा सूं घणी हिन्दू समाज री सांस्कृतिक सेवा आख्यान काव्यां करी आं रो चलण-           राजस्थानी री इज देण है-

                [१] डेल्हजी          -कथा अहमनी
                [२] पदम भगत    -रुक्मणी मंगळ
               [३] मेहोजी            -रामायण
               [४] केसोजी           -प्रहलाद चरित आद
[६] लोक काव्य -
        प्रेम गाथावां - स्त्री-पुरुष री प्रेम भावनावां रो अमर संगीत- भावनावां रो दरियाव-
          [१] ढोला-मारू
           [२] जेठवा-ऊजळी
            [३] शेणी-वीजानंद
             [४] नागजी-नागम्ती
         करूणा रो बोलतो चितराम-
               [१] नरसी मेहता रो मायरो
          वीरता,प्रेम रो अमर भाव-
                [१] निहालदे-सुल्तान
                [२] बगडा़वत
           वीरता अर वचन-पालण रो अनोखो सुर-
                 [१] पाबूजी रा पवाडा़
                  [२] तेजोजी
            लोक-गीत-धरती री धुन-
                   [१] इतिहास री दीठ , बातां अर लोककथावां
                   
[७] गद्य-
        भारतीय भाषावां में नुईं औळखाण- तेरवीं सई सूं आज तांईं री परम्परा-बात,ख्यात,बिगत,कथा आद
[८] १९ वीं सई - पळटाव अर बदळाव-
           -राष्ट्रीयता रो सुर
            -चेतावणी अर संदेश

             - नुवां विचारां रा वैतालिक

               १-बांकीदास
                २- सूर्यमल मीसण
                 ३-संकरदान सामोर-एक दीठ-हिन्दी अर राजस्थानी रा भूल्या बिसरया पात्र
               अर कीं पछै- बारहट केसरीसींह रा चेतावणी रा चूंगट्या
[९] आज़ादी-अर ईं रै पछै-साहित्य-
[१०] भाषा री समृद्धि-
                   -ईं री सबद सम्पदा
                   -सबद अर अर्थ छाया
[११] संक्षेप-
         १- भाषा री देण
          २- साहित्य री देण
           - कर्मठता अर कर्मशीलता
            -वीरता, त्याग,बलिदान अर देस सेवा
            -भेदभाव पर चोट
            -धरती अर जीवण सूं जुडे़डो़
             -उद्दात भावना रो स्रोत
             -जागरण अर चेतावणी रो हेलो
              -गुणां रो पैरैदार
             ३-इतिहास नै देण
              ४-संस्कृति नै देण
              ५-देस-निर्माण री नींव

 [] ओम पुरोहित 'कागद'
    24 -दुर्गा कोलोनी
   हनुमानगढ़ संगम - 335512 [ राजस्थान ]
  खूंजे रो खुणखुणियों - 09414380571

पाठ-6,राजस्थानी भाषा री त्यागत बोल्यां

पाठ-6,राजस्थानी भाषा री त्यागत बोल्यां
                             बोल्यां है मिणियां,माळा राजस्थानी 
                  [] -ओम पुरोहित 'कागद'
               ================================
नदियां रै जळ सूं ई समंदर भरीजै। भरियो समंदर ई सोवणो लागै। बिना जळ तो समंदर एक दरड़ो। मोटो समंदर बो ईज। जकै में घणी नदियां मिलै। भासा भी समंदर होवै। बोलियां होवै नदियां। बा ईज भासा लूंठी जकी में घणी बोलियां। आ बात बतावै भासा वि...ग्यानी। आपरी निजर है कीं भासा तणी बोलियां। उड़िया-24, बंगाली-15, पंजाबी-29, गुजराती-27, नेपाली-6, तमिल-22, तेलगु-36, कन्नड़-32, मलयालम-14, मराठी-65, कोंकणी-16, हिन्दी-43, अंग्रेजी-57 अर आपणी राजस्थानी में 73 बोलियां। अब बताओ दिखांण कुणसी भासा लूंठी? किणी भासा रो सबदकोस बोलियां रै सबदां री भेळप सूं सामरथवान बणै। जकी भासा में बोलियां कम। उणरो सबदकोस छोटो। आपणी मायड़भासा राजस्थानी रो सबदकोस दुनिया रो सै सूं मोटो। राजस्थानी भासा में एक एक सबद रा 500-500 पर्यायवाची। एक सबद रा इत्ता पर्यायवाची किणी भासा में नीं लाधै। भासा विग्यानी जार्ज ग्रियर्सन 'लिग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया' में, डॉ. एल.पी. टेस्सीटोरी 'इंडियन एंटीक्यूवेरी' में अर डॉ. सुनीतिकुमार चटर्जी 'पुराणी राजस्थानी' में राजस्थानी नै दुनिया में सैसूं बेसी ठरकै आळी भासा बताई है।
हरेक भासा में बोलियां होवै। एक भासा मुख सुख सूं बोलीजै। एक भासा बोली री ओळ में बोलीजै। पण अकादमिक भासा रो ठरको न्यारो। हिन्दी तो घणा ई लोग बोलै। हरेक री हिन्दी न्यारी-न्यारी। पण भणाई में पूरै देस री एक ई हिन्दी। जकी में पोथ्यां छपै। बा हिन्दी एक। आपणै पड़ोसी पंजाब नै ल्यो। पंजाब री राजभासा पंजाबी। पंजाबी में पटियाळवी, दोआबी, होशियारपुरी, मलवई, मांझी, निहंगी, भटियाणी, पोवाधि, राठी, गुरमुखी, सरायकी आद 29 बोलियां। पण बठै जका राजकाज रा दफ्तरी हुकम, अखबार-पत्रिकावां अर भणाई री पोथ्यां निकळै, बै एक इज भासा में निकळै। बा है मानक पंजाबी। राज रा हुकम सूं ई किणी भासा रो मानक थरपीजै। इकसार कायदो बणै। जकै दिन आपणी राजस्थानी राजकाज री भासा थरपीजसी। उण दिन मानक राजस्थानी भी थरपीजसी। सगळै दफ्तरां, अखबारां, पत्रिकावां अर पोसाळां री पोथ्यां में एक ई भासा चालसी। बा होसी मानक राजस्थानी। जद तक ओ काम नीं होवै, बठै तक लोग आप-आपरी बोली में लिखै। इण में हरज भी नीं है। अब देखो, पंजाब रै हर अंचल में न्यारी-न्यारी बोलियां बोलीजै। पण विधानसभा, कोट-कचे़ड्यां, पोसाळां, जगत-पोसाळां अर अखबार-पत्रिकावां में राज री थरपियोड़ी मानक पंजाबी ई बपराइजै। पंजाब रै भी हरेक लेखक री भासा में उणरै अंचल री महक भी आयबो करै। आवणी जरूरी है। इणसूं भासा रो फुटरापो बधै। आपणै राजस्थानी लेखकां री भासा में भी आपरै अंचल रो लहजो झलकबो करै। आपां हरेक अंचल री भासा रो सवाद चाखां। तो ठाठ ई न्यारा। बगीचै री सोभा भांत-भंतीला फूलां सूं ई बध्या करै। एक ई रंग-सुगंध रा फूलां रो किस्यो मजो।
राजस्थानी में भी मेवाड़ी, ढूंढाड़ी, मेवाती, वागड़ी, हाड़ोती, भीली, ब्रज अर मारवाड़ी समेत 73 बोलियां। आं सगळी बोलियां नै भेळ'र ई राजस्थानी भासा बणै। जकी भासा में जित्ती बेसी बोलियां, बित्ता ई क्रिया रूप। क्रिया विशेषण, कारक। विशेषण पर्यायवाची होया करै। हिन्दी में 'है' होवै, पण राजस्थानी में 'है', 'सै', 'छै', 'छ' आद कई रूप। हिन्दी में आपां कैवां- आपका। पण राजस्थानी में आपरो, आपनो, आपजो अर आपगो मिलै। राजस्थानी में कई जग्यां 'स' नै 'ह' बोलै। जियां साग नै हाग। सूतळी नै हूतळी। सीसी नै हीही। सासू नै हाहू। सात नै हात। अर सीरै नै हीरो।
कोलायत सूं जैसलमेर तक री पट्टी नै मगरो कैवै। ल्यो मगरै री बात बताऊं। दोय मगरेची बंतळ करै-
-होनिया, हुणै है कांई?
-हां, हूणूं हूं नीं, हैंग बातां।
-होनिया यार, हाहू नै हौ बोरी हक्कर होमवार नै भेजणी है। बोरी हीड़ दे नीं। लै हूवो-हूतळी।
-हूं बी हरहूं रै तेल री हो हीही हूहरै नै भेजणी है। म्हनै तो ओहाण ई नीं।
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अर अब बांचो जनकवि कन्हैयालालजी सेठिया री कविता री ऐ ओळ्यां-
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मेवाड़ी, ढूंढाड़ी, वागड़ी, हाड़ोती मरुवाणी,
सगळां स्यूं रळ बणी जकी बा, भासा राजस्थानी।
रवै भरतपुर अलवर अलघा, आ सोचो यांताणी!
हिन्दी री मा सखी बिरज री, भासा राजस्थानी।
जनपद री बोल्यां है मिणियां, माळा राजस्थानी।

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 [] ओम पुरोहित 'कागद'
    24 -दुर्गा कोलोनी
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पाठ-5, राजस्थानी भाषा री बोल्यां रा ठिकाणां

पाठ-5, राजस्थानी भाषा री बोल्यां रा ठिकाणां 
                                    [] ओम पुरोहित 'कागद'
               आप जाणों हो कै राजस्थानी भाषा में 73 बोल्यां है । ऐ बोल्यां राजस्थान रै अलावा देश अर विदेश में भी बोलीजै । आं  73  बोल्यां  में सूं मोटा-मोट 11 बोल्यां जादा अर बडै छेतर में बोलीजै । आओ आपां राजस्थानी भाषा री आं बोल्यां अर उण रा छेतरां नै भी जाणां -गोखां कै किसी बोली कठै - कठै बोलीजै :-

राजस्थानी भाषा री... मोटी-मोटी बोल्यां
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1-मारवाडी
2-शेखावाटी
3-बागडी
4-वागडी
5-मेवाती
6-हाडोती
7-ढुंढाडी
8-मेवाडी
9-भीली
10-पहाडी़
11-खानाबदोसी

आं बोल्यां री भोत सारी उप  बोल्यां भी है । जकी कोस - कोस माथै खिंड्योडी़ है ।

आओ जाणां आं बोल्यां रा ठोड़-ठिकाणां
====================
1-मारवाडी-
आ बोली वैदिक छेतर "मरुधन्व " जको महाभारत बगत में "मरुकान्तर" राज बोलीजती । ओ सारो छेतर समुन्दर रै नीचळी रेणका अर डूंगरां री बेकळा सूं ढकीज्योडो़ हो यानी रेत रो समन्दर ! यानी मरुथळ/मरुधस्थल/मरुधरा । राजस्थान रो आथूणलो पास्सो [ पश्चिमी ]  "मरुधन्व " अर "मरुकान्तर" हो । ईं छेतर री भाषा  यानी मरुस्थल री भाषा । रिगवेद में भी ओ मरु  छेतर ई बतायोडो़ है सो ईं छेत्र री भाषा मरुभाषा\मरुवाणी अर आज री मारवाडी़ है ।
मारवाडी़ राजस्थान री ई नीं दुनियां री जूनी बोल्यां में सूं एक है । इण में भाषा रा सगळा गुण मौजूद है । साहित्य,व्याकरण,सबद कोश,छन्द सास्तर,रस सास्तर आद सो क्यूं इण भाषा रै आंटै में है । राजस्थानी भाषा रो घणखरो साहित्य इणीज भाषा में रचीज्योडो़ थको है । आज री गुजराती इणीज भाषा सूं उपज्योडी़ एक रूप है । मारवाडी़ आज भी पाकिस्तान रै एक बडै हिस्सै [ सिंध सूं लेय’र पंजाब री सींवां ताईं ]  में बोलीजै । पाकिस्तान रा
गजराबाद,अमरकोट,कराची,गूजरांवाला,खेमकरण,सिंध,हैदराबाद रै इलाकां में  आज भी ब्यांव-रीत-नीत-पैरवास मारवाडी़ चालै । इण समूळै इलाकै में आज भी मारवाडी़ लोक गीत गूंजता रैवै । मारवाडी़ ओडियो-वीडियो कैसटां/सीड्यां खूब बणै अर बिकै । चावा लोक गीतां में मूमल,मरवण,जलालो,मटयारो, सावणीं तीज,चनेसर, करहो, पटयारी, पणिहारी,आमरलो,रायधण,घोंसलो,राणों काच्छबो, आद है ।
                  पाकिस्तान में "अंजुमन मारवाडी सोअरा " नांव री संस्था है जकी लगोलग राजस्थानी कवि सम्मेलन करावै । बाग अली सोक जैसलमेरी , यार मोहम्मद चौहान’ताहिर’ ,हम्मीद जैसलमेरी ,मोहम्मद रमजान ’नसीर ’ ,मास्टर अब्दुल" हम्मीद" जैसलमेरी, औरंगजेब जिया,असरफ़ अली "अफ़सोस" , कुरबान अली चौहान, महमूद दार "कश्मीरी", युनुस नीर,युनुस राही,लियाकत अली "दीपक" , अब्दुल मज़ीद"चिणगारी",बशीर अहमद "बशीर", मोहम्मद हनीफ़"काळू" ,सरदार अली चौहान फ़ारुक आज़म "फ़रीद", रज़ब अली"गम" अर फ़िरोज़ अली "फ़िरोज़" अठै रा नामी राजस्थानी साहित्यकार है ।
                   आज रै राजस्थान में जोधपुर ,बीकानेर ,जैसलमेर , बाड़मेर ] पाली,सिरोही ,नागौर, हनुमानगढ़, श्री गंगानगर जिलां में  सै्कडै़ दीठ सैंकडै़ अर चुरू,झुंझुनू,सीकर अर अजमेर ज़िलां  में रिपियै में बारै आन्ना  मारवाडी बोली ई बोलीजै । राजस्थान रै श्री गंगानगर,हनुमानगढ ज़िला अर पंजाब रा अबोहर फ़ाजिल्का हरियाणां रै सिरसा , हिसार छेतर में जकी बागडी़ बोली है बा मारवाडी़ सूं ई उपजी थकी है । इं बोली में का की को री जाग्यां करता रै सागै ई णीं,णां णों लगाई जै--म्हाणों, थांणों.उणां

2-शेखावाटी-
शेखावत राजवंश रा संस्थपक राव शेखा जी रो समूळो राज छेतर शेखावाटी बजै ।इण छेतर में बोलीजण आळी बोली शेखावाटी बजै । शेखावाटी बोली रो जलम मारवाडी़ अर ढुंढाडी़ रै मेळ सूं होयो थको है । आ घणीं जूनी भाषा नी है । इण बोली रो छेतर सीकर , चुरू [कीं चेतर ] , झुन्झुनू ज़िलां में है । इण बोली में का,की,को नै रा ,री,रो अर है नै सै , से नै सैं बोलै

3-बागडी=
बागडी़ रो मतलब बागड़ में रैवण आळा लोग  । बागडीं ई आं री बोली । बागड़ रो मतलब जंगळ ! राजस्थान रा हनुमानगढ़ अर श्री गंगा नगर जिलां सूं लेय’र पंजाब रा अबोहर-फ़ाजिल्का - भटिण्डा छेतर अनै हरियाणां रा  हिसार अर सिरसा छेतर में कदै ई "लक्खी वन" नांव रो लूंठो जंगळ हो । जंगळ पार उतराधै रा लोग अठै  रा लोगां नै बागडी़ [जंगळी ]अर आं री बोली नै बागडी़ [जंगळी] कैंवंता । धीरै धीरै ओ नांव पकग्यो ! आज भी अठै रै सिक्खां नै उतराधै रा लोग बागडी़ सिख अर बाणियां नै जंगळी बाणियां कैवै । रिगवेद री बगत अर महाभारत री बगत भी ओ छेतर नामी हो । उण बगत हरियाणै आळो पास्सो "कुरू-जांगळ" अर ईनलो पास्सो " मरु-जांगळ" बजतो । इणीज छेतर में जोधपुर रा राजकुंवर बीका जी आप रो राज थरपियो । बीकानेर राज रो परतीक वाक्य भी " जय जंगळधर पातसा " है " इण छेतर रो चावो लोक गीत है " जंगळ मंगळ देस म्हानै प्यारो लागै सा ।" ईन बोली में का , की को नै गा , गी , गो बोलै ।

4-वागडी=
राजस्थान अर गुजरात री सींवां जोड़ता राजस्थान रा बांसवाडा़ अर डूंगरपुर जिला वागडी़ रा जूना ठिकाणां है । वागडी़ बोली मारवाडी़ अर गुजराती री भेलप सूं उपजी थकी है । ईं बोली में का,की ,को नै ना नी नूं  अर ह अनै च नै स बोलै ।  इण बोली माथै गुजराती रो खासा असर है !


5-मेवाती=
मेवाती राजस्थानी री खास बोली है ! आ मेव अर गुर्जर लोगां री बोली है जका कदै ई कश्मीर,हिमाचल,पंजाब,राजस्थान,गुजरात,सिंध समेत समूळै उत्तरी भारत माथै राज करता । आ बोली कोई बगत महाराष्ट्र.गोआ.पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान अर रूस तांईं रा पसुपालक वर्ग री बोली ही अर बै गुर्जर ई हा ! राजपूत अर जाट जेडा़ छत्री ईणीं मे सूं फ़ंट्या बताईजै ।
आ बोली आगूणैं [ पूर्वी] राजस्थान रै अलवर जिलै अर राजस्थान रै लागती हरियाणां अनै दिल्ली री सींवां आळा छेतरां में बोलीजै । गूजरी इण रो एक भेद है। आ मेव लोगां री मूळ बोली है । दुनियांमें जठै भी मेव रैवै चाहे पछै बै मुसळमान [ धरम बदळ ] हिन्दू या  और कोई धरम रा होवै बै मेवाती बोली ई बोलै । जका गुजरमध्यकाल में मुसळमान बण्या बै आज मेव मुसळमान बजै ।
डा.सुनीति कुमार चटर्जी कथै "कसमीर री गूजरी बोली अर तमिलनाडू री सौराश्ट्री बोली राजस्थानी री ई एक बोली है ।" डा.देव कोठारी आगै बधता कथै-"हिमालय री तराई, कसमीर अर पंजाब में बसियोडा़ गुर्जर -अहीरां री बोली गूजरी-राजस्थानी री ई बोली है । डा.शक्ति कुमार शर्मा कथै-" रिगवेद में बखाणीजै जको ,गुजरकरण नांव रो  राजा हो बो इणीं छेतर रो राजा हो । बण इण छेतर रै पुष्कर में लूंठो जिग करवायो हो ।" डा. जोर्ज ग्रियर्सन कथै-" राजपूत जात्यांगुर्जरां सूं उपजी । गुर्जरां रो खिंडाव आबू परबत सूं होयो हो । अठै ई बां नै छेतर अर राज बंट्या । गुर्जर जोधा ई राज्य पुत्तर- राज पुत्तर- राजपूत कथीज्या ।" इण छेतर रा बिरामण गुर्जर बिरामण [ गुर्जर गोड़] गुर्जर प्रतिहार, गुर्जर पोरवाळ अर अर इंदा आद नामी है । गुर्जरां री उपसाख "सपादलख"बजै  । योगराज थानी कथै-" हरियाणवी बोली , पंजाबी,हिमाचली, अर कसमीरी री बजाय राजस्थानी रै सांकडै़ बेस्सी है ।"

6-हाडोती=
हाडा़ राजवंश रै राजावां रो राज छेतर हाडौ़ती छेतर अर इण छेतर री बोली हाडौती कथीजै । हाडौ़ती बोली राजस्थानी री दूसरी लूंठी अनै जूनी बोली है जिण में भाषा होवण रा सगळा लखण है । हाडौ़ती में अपार लोक साहित्य,लोक गीत,कोथ-कैबा,रासा,पड़-पवाडा़ आद मौजूद है ।
इण भाषा में अणथाग जूनों अर नूओं साहित्य, व्याकरण,सबद कोश,छन्द सास्तर,रस सास्तर आद सो क्यूं  आंटै में है । कोटा,बूंदी,बारां,झाल्लावाड़ जिला समूळा अर कीं हिस्सो सवाई माधोपुर रो हाडौ़ती रा ठिकाणां है ।

7-ढुंढाडी़ =
ढुंढाड़ छेतर राजस्थान रो ई नी देस रो नामी छेतर है । ओ बो छेतर है जठै पांदव "अग्यातवास " पूरो करयो । अठै रो लोहागर जी [ लोहार्गल ] तीरथ  बा जाग्यां है जठै पांडवां रो सराप पूरो होवण री परख होवै । पांडवां नै वरदान हो कै जकै दिन थारा हथियार पाणीं में गळ जासी उण दिन आपरो 14 साल रो बनवास पूरो हो जासी । पांदवां रा हथियार इणीं लोहागर जी रै तळाब में गळ्या । भीम रो ब्यांव भी इणीं इलाकै में होयो । बर्बरीक री नस किरसन जी अठै ई काटी । इण इलाकै में महाभारत काळ रा कई ऐनाण है । ओ छेतर आडावळ परबत माळा रो छेहलो छेतर है । अठै सूं डूंगर निवडै़ अर मरुथळ सरू होवै । इण इलाकै में मोटा-मोटा माटी रा डूंगर है जकां नै ढूंढ  कैवै ! नांव पड़्यो ढूंढ / ढुंढाड़ । अठै रा लोग ढुंढाडी़ अर आं री बोली भी ढूंढाडी़ । छेतर ई जद इत्तो जूनो है तो बोली तो आपै ई जूनी होयगी । ढुंढाडी़ में भी अपारार जूनों साहित्य रचीज्यो । ढुंढा़डी़ बोली रा ठिकाणां है-जयपुर,दौसा,टोंक  समूळा अनै सवाई माधोपुर अर सीकर  रा कीं इलाका । अठै है,हा, ही री जाग्यां छै,छा.छी बोलीजै ।


8-मेवाडी=
आ बोली मेवाड़ धरा माथै बोलीजै ! मेवाडी़ राजस्थानी री ठरकै आळी बोली है । ईण बोली में भी अकूत राजस्थानी साहित्य रचीज्यो थको है । मेवाड़ धरा राजस्थानी संस्कृति-कळा रो  गढ़ है ! आखै  भारत नै वीरता-बळिदान-त्याग-स्वराज आज़ादी रो पाठ सिखावण आळी इण धरा री परापर राजास्थान अर राजस्थानी भाषा री धरोहर है । उदयपुर , चित्तोड़गढ़, प्रतापगढ़, राजनगर, भीलवाडा़ , ज़िला समूळ अर कीं हिस्सो अजमेर रो मेवाडी़ बोली रा ठावा ठिकाणां है ।

9-भीली=
भीली बोली राजस्थान रै दिखणाद [ दक्षिण ] में बोलीजै । सोभा लाल पाठक रै मुजब-" मेवाड़ अर वागड़ रो हिस्सो, हाडौ़ती रो कीं हिस्सो , आथूणों मध्यप्रदेस [पश्चिमी]  रा झबुआ,रतलाम, धार,खरगोन , अर गुजरात रा  पंचमहल ,भरूच,गोधरा,बडौ़दा आद जिलां भीली बोली रा छेतर है । जोधसिंह कथै- " भीली बोली राजस्थानी अर गुजराती सूं मिलै । डा.ग्रियर्सन कथै भीली राजस्थानी अर गुजराती री कडी़ है । प्रो.सुनीति कुमार चटर्जी कथै-" व्याकरण री दीठ सूं भीली नै राजस्थानी भाषा में राखणी चाईजै ।" राजस्थानी भाषा रो असर मराठी अर कोंकणी माथै भी मिलै । राजस्थान रो " गवरी निरत " राजस्थान ,गुजरात , मध्य प्रदेस अर महाराष्ट्र में इकसार चावो है !

10-पहाडी़=
पहाडी़ बोली हिमालय री समूळी तराई में बोलीजै । उत्तराखंड,हिमाचल, कसमीर अर नेपाल ईं रा ठिकाणां है । डा.देव कोठारी  अर डा. जीवण खरकवाल कथै-"
नेपाल, गढ़वाल, कुमाऊ,अल्मोडा,सिमला, पिथोरागढ़ ,पोडी़ ,चमोली ,देहरादून  छेतर में  नाथ जाति रा  लोग जकी पहाडी़ बोली बोलै उण में राजस्थानी रो पुट है । गोरखा अर गुर्जर एक ई है ।परबतिया , गोरखा्ली , खस अर राजस्थानी भाषा री भेळप सूं ई राजस्थानी बणीं ।"

11-खानाबदोसी=
आ बोली राजस्थान रा खानाबदोस/यायावर लोग जका बिणज-बोपार सारू मुसाफ़री करता अर पछै बाअंडै ई बसग्या -बां री बोली है । खानाबदोस लोगां री "लाभाणीं " बोली बरार,मुम्बई, मध्यप्रांत, पंजाब , उत्तरप्रदेस आद  में बोलीजै । "रोमा" बोली  रोमां लोगां [ जिप्सी ] री बोली है जकी नै राजस्थान सूं गयोडा़ बिणजारा बोलै । आ बोली योरोप री न्यारी-न्यारी बसत्यां में बोलीजै । ईण बोली मे 100  में सूं 40 सबद राजस्थानी रा अर   60 ग्रीस ,फ़्रैंच , अर दूजी य्रोपीय भाषावां रा है  पण व्याकरण राजस्थानी ई है । डा. ब्रज मोहन जावलिया " रोमां बोली " रो सबद कोश त्यार करियो है जको राजस्थानी रो रूप है । ऐ रोमां लोग रूस ,चैकोस्लवाकिया ,चेचैन्यां , स्केण्डिनेविया ,जरमनी , फ़्रांस ,स्पेन ,अमेरिका  आद देसां में  बसै अर राजस्थानी बोलै । ताजुबेकिस्तान री भाषा तो पोरी तरिया राजस्थानी ई है । बठै री भाषा री एक बानगी देखो देखाण-" एक राजो थो । बीं कै दो राणियां थी ।

=====राजस्थानी री कीं और बोल्यां =======

"पिंडारी ",  [मुम्बई, अर मध्यभारत ] , " भाम्टी " [मध्यभारत ] ,"बेलदारी" [ राजस्थान -महाराष्ट्र ] ,ओड़की [राजस्थान ,पंजाब ,म्द्रास, गुजरात ,सिंध ,उत्तराखंद ,] ," लाडी " [ महाराष्ट्र, बरार ] , " गंवारिया" या " कंकेरी " [ उत्तर प्रदेस रो झांसी ,, अजमेर ] , "सांसी " [ राजस्थान , पंजाब ,, पाकिस्तान ] "गारोडी़ " [ बेलगांव ] , "म्यानवाळा "[ बेलगांव ]  . " कंजरी" ," नटी," , " डोम"  , " थळी " [सुजानगढ-रतनगढ {चूरू }], " बीकानेरी "[ बीकानेर ], "मगरेची" [ कोलायत ], " भंडाणीं"  [ लूणकरण्सर-काळू-महाजन ]" खेराडी़ ", " गोडवाडी़" , "देवडा़वाडी़ " , "अहीरवाटी", " तोरावाटी" , "जयपुरी " , " कठेडी़" , "राजावाटी" , "अजमेरी" ," किशनगढी़"[ अजमेर] ," शाहपुरी" [ भीलवाडा़],  "रांगडी़" , " सोडवाडी़" , "निमाडी़" , "पस्तो" [पाकिस्तान-अफ़गानिस्तान], " , "रोमां’ , "बिणजारी" ,"लभाणीं" , "टमटा" , "गूजरी ," सौराष्ट्री" अर हरियाणवी आद  भी राजस्थानी री बोल्यां है ।

 [] ओम पुरोहित 'कागद'
    24 -दुर्गा कोलोनी
   हनुमानगढ़ संगम - 335512 [ राजस्थान ]
  खूंजे रो खुणखुणियों - 09414380571

पाठ-4 , राजस्थानी भाषा अर बोल्यां

पाठ-4 , राजस्थानी भाषा अर बोल्यां
                    [] ओम पुरोहित 'कागद'
 
 जिण विध अलेखूं छेतरीय बोल्यां-भाषावां नै आपरै भीतर अंवेरती-सांवटती हिन्दी अनै दूजी भाषावां सांवठी अर लूंठी भाषावां है उणीज भांत राजस्थानी भाषा भी आपरी 73 बोल्यां नै आपरै भीतर अंवेरती-सांवटती ऐक लूंठी अनै थिर-सबळी भाषा है ! जिण भांत हिन्दी नांव री कोई निरवाळी भाषा नीं पण कईऐक भारतीय  भाषावां [43  भाषावां-बोल्य...ां ] रै समूह नै भेळ’र हिन्दी भाषा कथीजै ! यानी 43 बोल्यां री नेता बोली है हिन्दी ! इणीज भांत राजस्थानी भी कोई निरवाळी भाषा का बोली नीं  पण आपरी 73 बोल्यां री धिराणीं है ! आपरी 73 बोल्यां री नेता भाषा है ! यानी राजस्थान री सगळी बोल्यां रो ऐकठ नांव है राजस्थानी भाषा ! इण बात सूं कई लोग जाण बूझर’र अळगो मतो राखै , यानी कान्नां में कोवा लेवै । पण बां रो अंतस सांच सूं मुकर नी सकै ! ऐडा़ लोग निरमूळ चिन्ता करै कै मेवाडी़, वागडी़,ढुंढाडी़,हाडो़ती,शेखावाटी,मेवाती आद 73 बोल्यां  में सूं कुणसी है राजस्थानी ? ऐडा़ डोफ़्फ़ा लोग इण सांच नै जाणै कै आं बोल्यां री धिराणी ई राजस्थानी है ! बै लोग इण बात रो उथळो आज तांईं नीं दियो कै जे ऐ बोल्यां राजस्थानी भाषा री बोल्यां नीं है तो भळै किण भाषा री बोल्यां है ? ऐ डोफ़्फ़ा जाण बूझ’र  ईं सांच नै  चित नी चितारै कै जिण भांत लारलै सईकै सूं लेय’र हाल तांईं अवधि, बुन्देली, खडी़ बोली, मैथिली,छत्तीसगढी़,ब्रज, अर राजस्थानी हिन्दी में ऐक बोली रै रूप में भणाइजती ही ठीक उणीज भांत राजस्थानी में भी मेवाडी़, वागडी़,ढुंढाडी़,हाडो़ती,शेखावा
टी,मेवाती आद 73 बोल्यां ठरकै साथै राजस्थानी में भणाईजसी ! जद हिन्दी री भणाई में  अवधि, बुन्देली, खडी़ बोली, मैथिली,छत्तीसगढी़,ब्रज, अर राजस्थानी  आद बोल्यां अबखाई नें करी तो राजस्थानी भाषा री घर जाई बेट्यां सरीखी उण री बोल्यां मेवाडी़,  वागडी़, ढुंढाडी़, हाडो़ती, शेखावाटी, मेवाती आद 73 बोल्यां राजस्थान में भणाई अनै राज-काज में कियां अनै क्यूं अबखाई खडी़ करसी ? आ बात कोई नीं तो समझै अर नीं समझावै !
                 राजस्थानी भाषा में 73 बोल्यां है तो इण में अपरोगो कांईं है-आ तो ईण री जगचावी खासीयत है-त्यागत है ! दुनियां री कुणसी भाषा में बोल्यां नीं ?  संविधान री आठवीं अनुसूची में भेळीजी थकी भारत री 22 भाषावां में भी 6 सूं लेय’र 65 तक बोल्यां है । गुजराती-27, तमिल-22 , मरठी-65 , बंगाले- 15, पंजाबी- 29, कोंकणीं- 16, उडि़या-24 , नेपाली-06 , मलयालम-14 , कन्नड़-32 , तेलगु- 36, अंग्रेजी- 57, अर हिन्दी में 43 -  बोल्यां है । पण "ठाडै रो डोको डांग नै पाडै़" जीडी़ ई बात---ऐ सगळी भाषावां ठरकै सूं आठवीं अनुसूची में भी सामल है ,राज्यां री दूजी भाषावां  अनै राजभाषावां भी है ! इण में सूं कई भाषावां री तो खुद री लिपि भी नीं है ! जद आं सगळी भाषावां रै ऐक भाषा होवण में फ़रक नीं तो फ़गत अर फ़गत राजस्थानी भाषा अनै राजस्थान्यां सारू फ़रक क्यूं ? ऐक ई देश में कोई चीज  तय करण रा न्यारा-न्यारा मानदंड क्यूं ?

                 भाषा री एकरूपता री बात अनै चिन्ता सगळी दुनियां री भाषावां में रै’वै ! इण सारू दुनियां रा सगळा देश आप - आपरै अठै भाषा विभाग चलावै जको बगत-बगत माथै नया बदळाव करै अर राज रा फ़रमान काढ’र उणां नै बपरावण री हिदायत देंवता रै’वै ! हिन्दी  भी जकी आज है बा सन 1905 में नीं ही ! हिन्दी में भी लगोलग कई बरसां सूं एकरूपता पैटै बदळाव होय रै’या है ! भाषा विभाग अर गृह विभाग बदळाव अनै एकरूपता सारू परिपत्र जारी करता रै’वै ! जिण भांत 1905  सूं आज तांई हिन्दी री एकरूपता सारू सरकारी स्तर माथै काम होयो उणीज भांत जे सरकार राजस्थानी सारू फ़गत एक ई साल काम कर देवंती तो ओ एकरूपता आळो आंटो अनै टंटो कद रो ई मिट जावंतो ! पण सरकार राजस्थानी रो कदै ई भलो नीं सोच्यो ! चावै सरकार होवै ,चावै ब्यूरोक्रेट अर चावै शिक्षाविद होवै , सगळां ई राजस्थानी नै तो हरमेस मेटण री ई खेचळ करी ! आप राजस्थानी री एकरूपता री बात करो--राजस्थानी तो बापडी़ हरमेस आपरी ज्यान बचावण में लाग्योडी़ ई रै’ई !

                सरकार इत्तो कै’र किन्नो काट्टै कै - " राजस्थानी संविधान की आठवीं अनुसूची में नहीं है इस लिए हम कुछ नहीं कर सकते !’   अब आप हिन्दी रै बिगसाव-पसराव अनै एकरूपता री कहाणी जाणों-14 सितम्बर 1949 नै भारत री संविधान सभा हिन्दी नै राजभाषा बणावण री घोषणा करी करी अर संविधान री धारा 351 में ओ स्पष्ट करियो कै हिन्दी आपरी शब्दावली प्रमुखत: संस्कृत सूं लेसी पण गौणत: दूजी भारतीय भाषावां सूं भी लेयसी । पछै 1955 में रघुवीर जी रो पै’लो हिन्दी शब्दकोश आयो । हिन्दी निदेशालय 1960 में, वैज्ञानिक एवम्पारिभाषिक शब्दावली आयोग 1960 अर  61 में ,राजभाषाई विधाई आयोग 1961 में , राजभाषा अधिनियम 1963 में , राजभाषा नियम 1976 में बण्या । नागरी प्रचारिणी सभा भी 1947 , 1953 , 1957  अर 1962 में हिन्दी री एकरूपता अर मानकीकरण री ज़बरी खेचळ करी । राजस्थान विधानसभा 1956 में राजभाषा अधिनियम बणायो । बस अठै सूं ई राजस्थान में हिन्दी थोंपीजगी ! राजस्थान में 1965 में भाषा विभाग बणायो अर उण रै जिम्मे राजस्थान में हिन्दी रै बिगसाव-पसराव रो काम राख्यो ! राजस्थान रो बजट पै’ली बार 1977  सूं हिन्दी में बणावणो सरू करीज्यो ।

                 राजस्थान रै भाषा विभाग राजस्थान में हिन्दी रै बिगसाव-पसराव रो काम जोरदार ढंग सूं करियो ।  हिन्दी रो जम’र प्रचार करियो । हिन्दी रै पख में पोस्टर छपवाया-बंटवाया-चिपवाया । स्कूलां में हिन्दी भाषण-कविता री प्रतियोगितावां करवाई । सरकारी आदेशां-परिपत्रां रा हिन्दी अनुवाद करवाय । दफ़्तरा-स्कूलां में हिन्दी रा टाईपराइटर बंटवाया । हिन्दी में दस्कत करण-करावण री मुहिम चलाई ।  राज रा विज्ञापन , प्रमाण-पत्र ,नियुक्ति आदेश , पदौन्ति आदेश गजट , वित्तीय स्वीकृत्यां , बैठकां रा कार्यवृत , आवेदन , अर चिट्ठी -पतरी हिन्दी में लाज्मी करीज्या । पै’ली सूं लेय’र अठवीं तांईं री भणाई भी भाषा विभाग ई हिन्दी में सरू करवाई । इत्ती खेचळ रै बाद कठै ई लारला 64 सालां में जाय’र राजस्थानी नै मार’र उण री लास माथै राजस्थान में हिन्दी खडी़ होई । इत्ती खेचळ रै बाद जाय’र हिन्दी रै मानकीकरण अनै एकरूपता रा काम कीं होया पण हाल भोत कीं बाकी है । इण मैणत रो दसवों हिस्सो ई जे राजस्थानी सारू करीज जावै तो पछै देखो थे राजस्थानी भाषा रा ठाट ! राजस्थानी भाषा में मानकीकरण अनै एकरूपता रा मसला तो तुरता-फ़ुरती में जडा़मूळ सूं ई निवड़ जावै ।

 [] ओम पुरोहित 'कागद'
    24 -दुर्गा कोलोनी
   हनुमानगढ़ संगम - 335512 [ राजस्थान ]
  खूंजे रो खुणखुणियों - 09414380571

पाठ-3,राजस्थानी भाषा अर व्याकरण

पाठ-3,राजस्थानी भाषा अर व्याकरण
                      [] ओम पुरोहित 'कागद'
 
भाषा मिनख रै संस्कारां ,मिनखपणैं अर  बिगसाव रो अडाण होवै । भाषा रै पाण ई मिनख अर समाज में जुडा़व होवै । मिनख अर समाज भाषा रै पाण ई एक-दूजै री मनगत जाणै । भाषा ई समाज नै एकरस करै । मिनख री बुधी री उंडाई उण रै सबद भंडार--सबद कोठार सूं ई होवै ! मिनख रै जकी कोठै होवै बा होठै सबदां रै पाण ई आवै । इणी रै ताण बो बिगसै ! उण रा... बिणज बोपार,खेती-बाडी़,उद्योग-धन्धा,रीत-नीत, तीज-त्यूंआर,सगाई-पताई, ब्यांव-उच्छाव,चाल-ढाल-बोवार आद सगळां में उण री भाषा अर उण रै सबदां री ओळ होवै । संस्कृति अर भौतिक बिगसाव ई भाषा रै सबद भंडार-कोठार रै पाण ।मिनख अर भाषा रो बिगसाव भेळा चालै ! मिनख रै सागै ई भाषा जामै --पछै तो बधै-फ़ळै अर संसकारित होवै ! मिनखा जूण अर भाषा री उमर इकसार ! मिनखां री भेळप बधै---आपस में हेळ-मेळ बधै तो लोक बणै ! ओ विराट लोक ई सबद नै जलमै -परोटै-बिगसावै अनै मुख सुख रै ताण उंचा जगती नै सूंपै ! संस्कारित जगती इण सबदां नै संस्कारित करै ! यानी सबद लोक में घडी़जै , किणी प्रयोगसाळा का भाषा शस्त्री अनै भाषा विग्यानी रै सांकडै़ नी ! जका सबद ठडै सूं हिन्दी में लारला 64 सालां में घडी़ज्या उणां नै हाल ताईं लोक सीकार नीं करियो ! [ ऐ सबद भारत सरकार रै  कोसां में उनटच पडिया है ] लोक तो उणी सबद नै सीकारै जिण नै बो खुद घडै़-टांचै-परखै - परोटै अर बरतै । सबद बणावण अर बिगसावण में बोल्यां रो हाथ लूंठो होवै । बोली सबद घडै़ अर भाषा उण सबद नै टांचै । राजस्थानी भाषा इण सूं निरवाळी नीं ।

दुनियां री सगळी भाषावां रा तीन रूप होवै
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1- लोक भाषा [ बोली]
2-मुख सुख री भाषा [बोल-चाल]
3 -टंकसाळी भाषा  [ अकादमिक]

                      भाषा लोक में जामै -बधै । पै’ली ध्वनि , पछै बोली अर छेकड़ भाषा बणै   ।  दुनियां री सगळी भाषावां इयां ई जलमी  !  भाषा विग्यानी अर भाषा शास्त्री जेडा़ फ़दड़ पंच तो भोत बाद में जामै  । भाषा सरुआत में मुखसुख सूं चालै अर पछै टंकसाळी रूप धारण करै ।राजस्थानी भाषा सातवै सईकै [ सातवीं शताब्दि ] में जलमी । बधी अर जणै-कणैं रै मुंडां ढूकी ! इण रै बाद आ कांण -कायदां में बंधी । टंकसाळी रूप धरण करियो । पछै इण भाषा में सिरजण रो बायरो बग्यो ।   सातवैं सईकै सूं लेय’र आज ताईं लाखां ग्रंथ रचीज्या-सिरजीज्या । राजस्थानी भाषा रो सिरजण भंडर-कोठार अखूट-अकूंत अर अकूत है । हाल लाखां जूनां ग्रंथा री पांडुलिप्यां राजस्थान अर भरत सरकार रै अरकाइज विभाग री कैद में पडी़ है अर छपाई नै उडी़कै ।
                   राजस्थानी भाषा रो ओ टंकसाळी रूप इण रै  सबद भंडार-कोठार अर व्याकरण रै पाण ई होयो । बिना व्याकरण कोई भी भाषा बधै नी--थम जावै । राजस्थानी भाषा में लाखां ग्रंथ होवणों अर कदै ई राज री भाषा होवणो ओ साफ़-साफ़ दरसावै कै ऐडी़ सबळी अर जूनी भाषा रो कोई तो व्याकरण हो ई  ! हो सा , हो ! पै’लो तो लोक व्याकरण जको कळजां में हो लोगां रै । राजस्थानी भाषा लोक भाषा बजै ! राजस्थानी में आप जाणों लोक गीत-लोक-गाथा-कोथ-कैबा-बाणी-दूहा-हरजस-पड़-पवाडा़ आद भोत है अर सगळा जबानी चालै । पण सगळा भाषा , व्याकरण ,रस सिद्धान्त,अर छन्दां रै आंटै साव खरा बजै । इणां रा कांण - कायद देख भाषा शात्री आपरी आंगळ्यां चाब लेवै । तो इण सूं साफ़ है कै जद लोक में श्रुत रूप में इत्तो सांतरो अर टंकसाळी साहित्य हो तो लोक में ई श्रुत रूप में व्याकरण भी  जरूर हो ।
राजस्थानी भाषा रो आज रो टंकसाळी रूप व्याकरण रै कारण ई त्यार होयो । आज राजस्थानी भाषा अर ऊन री बोल्यां में रा अलेखूं छप्या-अणछप्या व्याकरण आपां रै सांकडै़ है । जिण भांत बोली सूं भाषा अर भाषा सूं टंकसाळी भाषा बणै उणी भांत व्याकरण भी जलमै-बिगसै-सुधरै अर टंकसाळी रूप धारै । भाषा अर व्याकरण री आ लगोलग जातरा चालती रैवै ।

राजस्थानी भाषा रै व्याकरण री जातरा
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                          राजस्थानी भाषा रो पै’लो अर लूंठो व्याकरण श्रुत में इज है ! चारण कवियां नै ईण में महारत हासल ही ! लिखत-पढत रो काम अर साहित्य सिरजण रो घणखरो काम चारण ई करता ! इण कारण व्याकरण-छन्द,रस  आद रो समूळो ग्यान-ध्यान चारणां नै ई हो ! सतरवैं सईकै ताईं आवंता-आवंतां राजस्थानी भाषा  घणीं राती-माती अर ठरकै आळी भाषा कथीजती । ईन रै बोलणियां री गवाडी़ भोत मोटो-ठाडी अर भांत भंतीली ही जकी आखी दुनियां में पसरियोडी़ ही । आज रै समूळै राजस्थान ,गुजरात,मध्यप्रदेश,नेपाल,पंजाब.हरियाणां ,हिमाचल ,पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान. अर रूस ताईं ईण री बोल्यां बोलणियां रो पसराव हो । इणीज कारण इण रै बोलण रो ढंग ढाळो भांत-भंतीलो अनै इणीज कारण इण रा व्याकरण भी भांत भंतीला । राजस्थानी भाषा उड़दू भाशा में भी लिखीजै सो उड़दू [ पाकिस्तान में ] में भी राजस्थानी व्याकरण लिखीज्या । पाकिस्तान में जनाब बाग अली सोक " राजस्थानी जबान ओ अदब " [ उड़दू  में ] नांव रो राजस्थानी व्याकरण लिख्यो जको बठै रै चौहाण पब्लिकेशन,गजदराबाद,कराची सूं छप्यो ।

                       आज सूं कोई अस्सी बरस पै’ली जोधपुर रा पं रामकरण जी आसोपा पोथी रूप पै’लो राजस्थानी व्याकरण आपां री निज़र करियो--"मारवाडी़ रो व्याकरण " । इटली रा विद्वान एल.पी.टेस्सेटोरी भी राजस्थानी व्याकरण लिख्यो ।  सन 1954 में पदमश्री सीताराम जी लालस रो " राजस्थानी व्याकरण" साम्ही आयो ।  ओ व्याकरण डा. नीरज दइया  [ फ़ेस बुक आळा आपणां भायला ] रै सम्पादन में राजस्थानी भाषा एवम संस्कृति अकादमी , बीकानेर री पत्रिका " जागती जोत " रै बरस-31, अंक- 9 -10 , 11 दिसम्बर सूं फ़रवरी  2003 में समूळो छप्यो । डा.बी.एल. माळी रो " छात्र उपयोगी राजस्थानी व्याकरण " भी छप’र आयो जक भोत चर्चित रैयो । अमेरिका अर जरमनी में भी राजस्थानी व्याकरण लिखीज्या है । अमेरिका में अबार डा. लखन गुसांईं  राजथानी भाषा रो लूंठो व्याकरण लिख रै’या है ।

 [] ओम पुरोहित 'कागद'
    24 -दुर्गा कोलोनी
   हनुमानगढ़ संगम - 335512 [ राजस्थान ]
  खूंजे रो खुणखुणियों - 09414380571

पाठ-2, राजस्थानी सबद बुगचो [ सबद कोस ]

पाठ-2, राजस्थानी सबद बुगचो [ सबद कोस ] 

                      [] ओम पुरोहित 'कागद'
 
कोई भाषा कित्ती जूनी ठरकै अर मठोठ आळी है इण बात रो ठाह उण रै सबद भंडार  सूं लागै । जिण भाषा  में जगत रै सगळै जड़-चेतन री किरियावां , संज्ञावां विसेसण कारक आद सबद रूप में बखाणीज सकै-कथीज अर लिखीज सकै , जोड़ला सबद, परयायवाची, विलोम सबद, रो अणथाग खजानों  होवै बा भाषा जूनी ठरकै अर मठोठ आळी बजै । जकी  भाषा खनै जित्ती घणीं ब...ोल्यां होवै उण खनै बित्ता ई घणां सबद अर उणां रा परयायवाची , एकारथी, घणांअरथी, अर सबदां रा विलोम सबद होसी । कोई भी भाषा होवो , बा आपरो सबद भंडार आपरी बोल्यां सूं ई सबद लेय’र भरै ! आपां दुनियां रा स्सै सूं घणां भागसाळी हां  कै आपणीं मायड़ भाषा राजस्थानी में 73 बोल्यां है ।  राजस्थानी भाषा आपरी आं  73 बोल्यां सूं सबद अंवेरै । इणीज कारण  राजस्थानी भाषा खनै आपरै एक ई महाकाव्य "पृथ्वीराज रासो" माथै निरवाळो अर दुनियां रो स्सै सूं लूंठो सब्द कोस है  जिण में 380000 सब्द है ! आओ जाणा राजस्थानी भाषा रा जूना अर नूआं सबद कोस-

राजस्थानी सबद कोस री जातरा
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राजस्थानी में घणां ई जूना सबद कोस है पण आं रो सरूप आज रै सबद कोसां दाईं नीं है । जुरतमुजब, विषयवार  अर छन्दा रै बंधेज में है । आं री विगत इण भांत है-

 A-जूनी ढाळ रा छन्द बन्ध्या सबद कोस
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1-पाईयल्च्छीनांममाळा-रचनाकार-पं.धनपाल जैन--वि.सं- 1029 [ईस्वी-972 ]
2-देसी नांम माळा- रचनाकार-हेमचन्द्र [रयणावली ]
3-अभिधानचिन्तामणिनांममाळा-हेमचन्द्र [ वि.सं.-1145 ]
4-अनेकारथी संग्रै-हेमचन्द्र
5-डिंगळ नांममाळा-कुसललाभ-[वि.स.- 1618 रै ऐड़गेड़]
6-नागराज डिंगळ कोस-नागराज पिंगळ
7-हमीर नांममाळा- हमीरदान रतनू-[ वि.स.-1714 }
8-अवधानमाळा-बारठ उदैदान
9-नांममाळा- रचनाकार रो ठाह कोनी
10-डिंगळ कोस-मुरारीदान [ महाकवि सूरजमल रो खोळायत बेटो ]
11-अनेकारथी कोस-उदैदान बारहठ
12-एकाखरी कोस-वीरभान रतनू
13--एकाखरी नांममाळा-उदैराम बारहठ
14-पारसत नांममाळा-कुंवर कुसल
15-लखपति मांन मंजरी-लखपत
16-विजैराज मंजरी नांममाळा-लखमी कुसल
17-सुबोध चंद्रिका-अनेकारथी नांममाळा- फ़कीर चन्द
18-वैजैप्रकास कोस- वजमाल मेहडू
19-अनेकारथी नांममाळा-महासिंघ [ सम्वत-1760 ]
20-अनेकारथी नांममाळा-महासिंघ [ सम्वत-1702 ]
21-अनेकारथी- सागर रचेता-[ 19 वों सईको ]
22-आतमबोध नांममाळा-चेतन विजय
23-आरंभ नांमाळा-सुबुद्धि [ 18 वों साईको ]
24-ख्वालकबरी-पं.अभयसोम
25-धनजी नांममाळा- सागर कवि [ 19 वों सईको ]
26-प्रदिपिका नांममाळा-रघुनाथ
27-भारती नांममाळा- भीख जैन वि.सं-1685
28-मानमंजरी नांममाळा- बद्रीदास- [ वि.सं.1725]
29 -अनेकनांममाळा-नन्ददास
30-अनेकारथी नांममाळा-नन्ददास
31-नांम निकेत-बिहारीदान
32 -मान मंजरी-नन्ददास [ वि.सं.-1941 ]

B-नूंईं ढाळ रा सबद कोस
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33-राजस्थानी सबद कोस-पद्मश्री सीताराम लालस [ सन- 1978 ] इण रा 9 खंडां में , 9 बाई 11 इंच साइज रै  6000      पान्नां माथै 200000 सबद है
34- राजस्थानी-हिन्दी छोटो सबद कोस - पद्मश्री सीताराम लालस , पाना - 1726सबद 250000
35-राजस्थानी-हिन्दी सबद कोस-बदरी प्रसाद साकरिया
36-राजस्थानी-हिन्दी लघु सबद कोस-बी.एल माळी असांत
37-राजस्थानी-हिन्दी-अंग्रेजी सबद कोस-भंवर लाल सरमा अर डा.रघुवीर सिंह गेहलोत
38-राजस्थानी औद्योगिक सबदावळी-डा. ब्रजमोहन जावलिया
39-वागड़ नो राजस्थानी सबद कोस-ब्रजलाल भाणावत
40-वागड़ छेत्तर रो सबद कोस-डा. ब्रजमोहन जावलिया [ काम चालै हाल ]
41-सबकी बोली--डा. रघुवीर-----[ पै’लै रो ठाह नीं पण दूजो संस्करण-1942 ] ओ सबद कोस रोमा बिणजारां री राजस्थानी खानाबदोस बोली जकी ऐशिया, अफ़िका,योरोप में बोलीजै  रो
42-सबद सम्पदा- मूळचन्द प्राणेस
43-राजस्थानी सबद कोस- किसन सिंह बारहठ

सांस्कृतिक / धारमिक राजस्थानी सबद कोस
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44-पृथ्वीराज रासो सबद कोस-सम्पदन- डा, देव कोठारी --सबद खजानो - तीन लाख अस्सी हज़ार
45-मीरां सबद कोस-कृष्ण चन्द्र सास्त्री
46-जम्भवाणी सबद कोस- किसना राम विश्नोई
47-अणभैवाणीं जी सबद कोस- राजचरण जी महाराज
49 प्रारम्भिक राजस्थानी सबद कोस-तुला राम जोसी
50जुतपत कोस--अंग्रेजी में गया थका राजस्थानी सबदां अर राजस्थानी भाषा में बरतीजण आळा अंग्रेजी ,अरबी ,फ़ारसी रा सबदां री विरोळ ----सबदां री उत्पति

 [] ओम पुरोहित 'कागद'
    24 -दुर्गा कोलोनी
   हनुमानगढ़ संगम - 335512 [ राजस्थान ]
  खूंजे रो खुणखुणियों - 09414380571